आखिर तक लड़ेंगे लड़ाई, नहीं छोड़ेंगे हिम्मत: उद्धव ठाकरे

भारत निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को शिंदे गुट को शिवसेना नाम दिए जाने का आदेश दिए। आयोग ने कहा कि एकनाथ शिंदे की पार्टी द्वारा चुनाव चिह्न तीर और कमान बरकरार रखा जाएगा। मुख्यमंत्री शिंदे ने इसे सत्य और बालासाहेब ठाकरे के विचारों की जीत बताया है। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेस को संबोधित करते हुए पलटवार किया।

उद्धव ठाकरे ने कहा, इन्हें तो सुप्रीम कोर्ट के जज चुनने का भी अधिकार चाहिए। आज का चुनाव आयोग का फैसला अत्यंत अनपेक्षित है क्योंकि लगभग छह महीने तक हम इस मुद्दे पर लड़ रहे हैं। हमारी मांग थी कि जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आता, तब तक चुनाव आयोग कोई फैसला न दे। पार्टी किसकी है, अगर यह निर्वाचित विधायकों के आधार पर तय होगा, तो संगठन का क्या अर्थ है।

उन्होंने आगे कहा, धनुष-बाण को कोई हमसे नहीं छीन सकता। चोरी जायज साबित हो गई, यह सोचकर चोर खुश हो रहे हैं। उन्हें धनुष-बाण के पेड़े अभी खाने दीजिए, लेकिन यह चोरी आपको हजम नहीं होगी। चोर तो चोर ही होता है। शिवसैनिकों से यही कहूंगा कि यह लड़ाई हम आखिर तक लड़ेंगे, हमें हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए।

उद्धव ठाकरे ने कहा, हम निश्चित रूप से चुनाव आयोग के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हमें भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट इस आदेश को रद्द कर देगा और 16 विधायकों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा, किसी के नेता चुरा लिए, नाम चुरा लिया, चुनाव चिह्न चुरा लिया, लेकिन मुखौटा तो मुखौटा ही रहेगा। इससे जीत नहीं मिलेगी। यह सरासर अन्याय है।

ठाकरे ने कहा, देश में तानाशाही की शुरुआत हो गई है, ऐसा एलान प्रधानमंत्री को कर देना चाहिए। उन्होंने यह भी पूछा, इंदिरा जी में कम से कम यह कहने की हिम्मत थी कि देश में आपातकाल लागू हो गया है। क्या इनमें यह कहने की हिम्मत है?  उन्होंने आगे कहा, उन्हें पता चल गया है कि ‘मोदी’ नाम महाराष्ट्र में काम नहीं करता है, इसलिए उन्हें अपने फायदे के लिए अपने चेहरे पर बालासाहेब का मुखौटा लगाना होगा।

‘लोकतंत्र पर हो रहा अन्याय, लोकशाही का हो रहा वस्त्रहरण’
ठाकरे ने आगे कहा, कई लोगों को यह लगा होगा कि शिवसेना खत्म हो जाएगी, लेकिन शिवसेना इतनी बेदम नहीं है। शिवसेना प्रमुख के पूजा घर में जो धनुष-बाण था, वही यह धनुष-बाण है, जो पार्टी का चिह्न रहा है। उस धनुष-बाण का तेज अब भी बरकरार है, लेकिन लोकतंत्र पर अन्याय हो रहा है। लोकशाही का वस्त्रहरण हो रहा है।

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