ऑस्ट्रेलियाई पीएम पर भड़के फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों, कहा- झूठ बोला

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने आरोप लगाया है कि पनडुब्बी समझौते को लेकर ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने उनसे झूठ कहा था.

जब इमैनुएल मैक्रों से पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि स्कॉट मॉरिसन झूठ बोल रहे थे तो उन्होंने कहा, “मुझे सिर्फ़ लगता नहीं है बल्कि मैं ये जानता हूं.”

हाल ही में अरबों डॉलर के पनडुब्बी निर्माण के एक सौदे के चलते ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के संबंधों में तनाव आ गया है.

ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस से 12 पनडुब्बियाँ लेने के एक सौदे को ख़त्म कर अमेरिका और ब्रिटेन के साथ एक नया रक्षा समझौता कर लिया था.इस फ़ैसले पर फ़्रांस ने नाराज़गी जाहिर करते हुए इसे ‘पीठ में छुरा घोंपने’ जैसा कहा था. फ्रांस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूत भी वापस बुला लिए थे.

इस मामले के बाद से जी20 सम्मेलन में पहली बार इमैनुएल मैक्रों और स्कॉट मॉरिसन के बीच मुलाक़ात हुई.

जी20 सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति मैक्रों से एक ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार ने पूछा कि क्या वो प्रधानमंत्री मॉरिसन पर फिर से भरोसा कर पाएंगे.

इस पर इमैनुएल मैक्रों ने कहा, “हम देखेंगे कि वो क्या लेकर आते हैं.”

“मैं आपके देश का बहुत सम्मान करता हूं. आपके लोगों के लिए मेरे अंदर बहुत सम्मान और दोस्ती की भावना है. पर जब हम सम्मान करते हैं तो आपको सच्चा होना चाहिए और इस मूल्य के अनुसार आपको लगातार व्यवहार करना होगा.”

न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक राष्ट्रपति मैक्रों के इस बयान के बाद ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति से झूठ नहीं बोला था. उन्होंने पहले ही बता दिया था कि पारंपरिक सबमरीन से अब ऑस्ट्रेलिया की रक्षा ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाएंगी.

उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच फिर से विश्वास और संबंध बनाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं.

ऑकस

पिछले महीने ब्रिटेन और अमेरिका के साथ ऑस्ट्रेलिया के हुए ऐतिहासिक सुरक्षा समझौते को ‘ऑकस’ समझौता कहा जा रहा है. ये पिछले कई दशकों में हुआ ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा रक्षा समझौता है.

इस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया पहली बार न्यूक्लियर पनडुब्बी बना सकेगा जिसकी तकनीक उसे अमेरिका से मिलेगी. साथ ही, उसे आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और अन्य तकनीकें भी मिलेंगी.

इसके बाद ऑस्ट्रेलिया परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों को संचालित करने वाला दुनिया का सातवां देश बन जाएगा. इससे पहले अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, भारत और रूस के पास ही ये तकनीक है.

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