क्या लागू हो पायेगी समान नागरिक संहिता

पूनम श्रीवास्तव

समान नागरिक संहिता का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। भारत में समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों का एक कानून होगा। शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के मसले पर नए सिरे से परामर्श मांगने की प्रक्रिया शुरू की है। आयोग ने आम लोगों और धार्मिक संगठनों से इस मुद्दे पर राय मांगी है। विधि आयोग के इस निर्णय के बाद समान नागरिक संहिता का मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत के लिए एक कानून बनाने की मांग करता है, जो विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगा। भारत में आपराधिक कानून समान हैं और सभी पर समान रूप से लागू होते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी धार्मिक मान्यताएं क्या हैं, जबकि नागरिक कानून विश्वास से प्रभावित होते हैं। विवाह, विरासत, गोद लेने, उत्तराधिकार आदि जैसे मामलों को भारत में विभिन्न धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार नियंत्रित किया जाता है।
हिंदू धर्म में, व्यक्तिगत कानून, विरासत, उत्तराधिकार, विवाह, गोद लेने, सह-पालन, अपने पिता के ऋणों का भुगतान करने के लिए बेटों के दायित्वों, पारिवारिक संपत्ति के विभाजन, संरक्षकता और धर्मार्थ दान से संबंधित निर्णय कानूनी मुद्दों पर लागू होते हैं। किन्तु इस्लाम में, व्यक्तिगत कानून, विरासत, वसीयत, उत्तराधिकार, विवाह, वक्फ, दहेज, संरक्षकता, तलाक, उपहार, और कुरान से जुड़ें मामलों पर लागू होते हैं।कर्नाटक में चल रहे हिजाब विवाद के कारण देश में समान नागरिक संहिता का आह्वान फिर से बढ़ रहा है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने भी यह वादा कियाहै कि यदि वे फिर से सरकार के लिए चुने जाते हैं, तो राज्य के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करेंगे।
अभी देश में गोवा अकेला राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है। ये पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867 के नाम से मशहूर है। गोवा के भारत में 1961 में विलय के बाद भी कोड वहां लागू रहा। चुनावी सरगर्मियों के साथ ही हाल के दिनों में यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा सुर्खियों में है। इस साल जहां-जहां भी विधान सभा चुनाव हुए हैं, उन सभी राज्यों में यूनिफॉर्म सिविल कोड बड़ा चुनावी मुद्दा बन कर उभरा है। बीजेपी ने भी अपने प्रचार अभियान में इसे बड़े मुद्दे के तौर पर शामिल किया है।
कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रितु राय अवस्थी के अगुवाई वाले विधि आयोग ने समान नागिरक संहिता के लिए दोबारा से राय मांगी है। आयोग ने बुधवार को सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। इससे पहले 21वें विधि आयोग ने आम लोगों और हितधारकों से 7 अक्तूबर, 2016 को राय मांगी थी। 19 मार्च, 2018 और 27 मार्च, 2018 को फिर से इसे दोहराया गया था।इसके बाद 31 अगस्त, 2018 को विधि आयोग ने नागरिक कानून के सुधार के लिए सिफारिश की थी। चूंकि पिछली राय को तीन साल से ज्यादा वक्त बीच चुका है। ऐसे में विषय की गंभीरता और कोर्ट के आदेशों को देखते हुए 22वें विधि आयोग ने इस विषय पर फिर से राय लेने का फैसला किया है।
समान नागरिक संहिता का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों का एक कानून होगा। शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा।
संविधान के मसौदे के अनुच्छेद 35 को भारत के संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 44 के रूप में राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के हिस्से के रूप में जोड़ा गया था। इसे संविधान में संविधान निर्माता डॉ. बीआर आम्बेडकर नेइस नजरिए के रूप में शामिल किया था कि जब राष्ट्र इसे स्वीकार करने के लिए तैयार होगा तभी इसे सामाजिक स्वीकृति दी जा सकती है। और अब वो वक्त आ गया है। समान नागरिक संहिता की उत्पत्ति औपनिवेशिक भारत में तब हुई जब ब्रिटिश सरकार ने 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानूनों की एकरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। विशेष रूप से इसमें यह सिफारिश की गई थी कि हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस तरह के संहिताकरण के बाहर रखा जाए। ब्रिटिश सरकार को 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बी एन राव समिति बनाई। समिति ने शास्त्रों के अनुसार, एक संहिताबद्ध हिंदू कानून की सिफारिश की, जो महिलाओं को समान अधिकार देगा। इसके साथ ही समिति नेहिंदुओं के लिए विवाह और उत्तराधिकार के मुद्दों में भी नागरिक संहिता की सिफारिश की।

राव समिति की रिपोर्ट का प्रारूप बी आर आम्बेडकर की अध्यक्षता वाली चयन समिति को सौंपा गया था। यह प्रारूप 1951 में संविधान को अपनाने के बाद चर्चा के लिए आया। चर्चा के बीच ही हिंदू कोड बिल समाप्त हो गया और 1952 में दोबारा प्रस्तुत किया गया। बिल को 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में अपनाया गया ताकि हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के बीच वसीयत या उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित और संहिताबद्ध किया जा सके। अधिनियम ने हिंदू व्यक्तिगत कानून में सुधार किया और महिलाओं को अधिक संपत्ति अधिकार और मालिकाना हक दिया। इसने महिलाओं को उनके पिता की संपत्ति में संपत्ति का अधिकार दिया।
भारत में आपराधिक कानून समान हैं और सभी पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे उनकी धार्मिक मान्यताएं कुछ भी हों। वहीं, दूसरी ओर नागरिक कानून धार्मिक मूल्यों से प्रभावित होते हैं। समान नागरिक संहिता लागू होने पर हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून, विशेष विवाह अधिनियम जैसे कानूनों की जगह लेगा। समान नागरिक कानून तब सभी नागरिकों पर लागू होगा चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इसके समर्थकों का तर्क है कि यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, धर्म के आधार पर भेदभाव को कम करने और कानूनी प्रणाली को सरल बनाने में मदद करेगा। वहीं, दूसरी ओर विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा जबकि व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।
अक्टूबर 2022 में एक याचिका के जवाब में दायर हलफनामे में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय ने कहा था कि अनुच्छेद 44 (यूसीसी) संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के उद्देश्य को मजबूत करता है। मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में कहा था कि विषय वस्तु के महत्व और इसमें शामिल संवेदनशीलता को देखते हुए विभिन्न समुदायों को नियंत्रित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के प्रावधानों के गहन अध्ययन की आवश्यकता है। इसके साथ ही केंद्र ने भारत के विधि आयोग से संबंधित मुद्दे की जांच करने और उनकी सिफारिश करने का अनुरोध किया था। यह मुद्दा कई दशकों से राजनीतिक बहस के केंद्र में रहा है। केंद्र की मौजूदा सत्ताधारी भाजपा के लिए जनसंघ के जमाने से प्राथमिकता वाला एजेंडा रहा है। भाजपा सत्ता में आने पर को लागू करने का वादा करने वाली पहली पार्टी थी और यह मुद्दा उसके 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र का भी हिस्सा था।
देश में संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लेकर प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि राज्य इसे लागू कर सकता है। किन्तु इसका उद्देश्य धर्म के आधार पर किसी भी वर्ग विशेष के साथ होने वाले भेदभाव या पक्षपात को खत्म करना और देशभर में विविध सांस्कृतिक समूहों के बीच सामंजस्य स्थापित करना होना चाहिए।

 

 

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