बच्चों में क्‍यों बढ़ रहे कार्डियोवेस्कुलर डिजीज के मामले

इन दिनों लोगों में दिल की बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। लगातार बिगड़ती लाइफस्टाइल और हमारी आदतों का असर हमारी सेहत पर भी पड़ने लगा है। दिल हमारे शरीर का एक अहम हिस्सा है, जो हमें सेहतमंद बनाने के लिए कई सारे जरूरी काम करता है। ऐसे में सेहतमंद रहने के लिए दिल का हेल्दी रहना काफी जरूरी है। हालांकि, हमारी आदतों की वजह से अक्सर हमारा दिल बीमार होने लगता है। बीते कुछ समय से बड़े ही नहीं, बल्कि बच्चे भी दिल से जुड़ी बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं।

दिल की बीमारी एक गंभीर समस्या है, जिसके प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से हर साल 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाता है। कोरोनाकाल से ही देशभर में हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट के मामले काफी बढ़ गए हैं। सोशल मीडिया पर लगातार कई ऐसे वीडियो सामने आते रहते हैं, जहां कम उम्र के लोग हार्ट अटैक की वजह से अपनी जान गंवा रहे हैं। युवाओं और बच्चों में बढ़ते दिल की बीमारियों के मामले चिंता का विषय बने हुए हैं।

बच्चों में हार्ट डिजीज के बारे में बात करते हुए डॉक्टर कहते हैं कि कार्डियोवेस्कुलर डिजीज (सीवीडी), जिसे पहले मुख्य रूप से वयस्कों को प्रभावित करने वाला माना जाता था, अब तेजी से बच्चों को प्रभावित कर रहा है। यह एक चिंताजनक विषय है, जो हमारी युवा पीढ़ियों के स्वास्थ्य के प्रति हमारा ध्यान आकर्षित करती है। आमतौर पर सीवीडी को उम्र बढ़ने की बीमारी के रूप में देखा जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में बच्चों में दिल से जुड़ी समस्याओं में चिंताजनक बढ़ोतरी देखने को मिली है।

बच्चों में हार्ट डिजीज के कारण

बच्चों में हार्ट डिजीज की कई वजह हो सकती हैं, जिनमें कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज, आनुवांशिकी और देर से गर्भधारण मुख्य हैं। कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज जन्म से ही बच्चों को अपना शिकार बनाती हैं, जिसकी वजह से दिल के स्ट्रक्चर में गड़बड़ी और अन्य असामान्यताएं हो सकती हैं। वहीं, आनुवंशिक कारक भी बच्चे के दिल पर पर्याप्त प्रभाव डालते हैं, क्योंकि कुछ जेनेटिक म्यूटेशन बच्चों को दिल से जुड़ी समस्याओं का शिकार बना सकते हैं।

इसके अलावा, देर से गर्भधारण, खासकर 35 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं की संतानों में कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज का खतरा काफी ज्यादा होता है। ऐसे में इन जोखिमों को कम करने और समय रहते बीमारी का पता लगाने के लिए जन्म से पहले सही देखभाल और डॉक्टर की सलाह जरूरी है।

बच्चों में सीवीडी का पता लगाने के लिए कई सारे कारकों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। इसके लिए पारिवारिक इतिहास, मोटापा और अनहेल्दी आदतों जैसे जोखिम कारकों का आकलन करने के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच की जानी चाहिए। साथ ही ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के लेवल की निगरानी कर छिपे हुए खतरों का पता चल सकता है। बच्चों में दिल से जुड़ी बीमारियों का पता लगाना जरूरी है, क्योंकि यह आगे चलकर गंभीर रूप भी ले सकता है।

बच्चों में दिल की बीमारी का निदान

विभिन्न तरीकों से बच्चों में सीवीडी का जल्द पता लगाया जा सकता है। इसके लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) से अनियमित हृदय गति का पता लगा सकते हैं, जबकि इकोकार्डियोग्राफी हृदय की संरचना और फंक्शन का पता कर सकती है। इन टेस्ट्स की मदद से कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज, कार्डियोमायोपैथी और अन्य दिल से संबंधित असामान्यताओं की पहचान की जा सकती है।

जीवनशैली में सुधार

एक बार सीवीडी जोखिम कारकों की पहचान हो जाने के बाद, जीवनशैली में बदलाव कर इसे काफी हद तक रोका जा सकता है। इसके लिए बच्चों और उनके परिवारों को स्वस्थ खान-पान की आदतें और नियमित शारीरिक गतिविधि को लाइफस्टाइल में शामिल करने की जरूरत है। अपनी डाइट में फल, सब्जी और साबुत अनाज को शामिल कर प्रोसेस्ड फूड, शुगरी ड्रिंक्स और अत्यधिक सोडियम के सेवन को कम कर सकते हैं। साथ ही शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के लिए स्क्रीन समय को सीमित कर खेलकूद आदि में समय बिता सकते हैं।

सही इलाज

कुछ मामलों में, जीवनशैली में बदलाव पर्याप्त नहीं होता है और इसके लिए सही इलाज बेहद जरूरी होता है। दवाएं हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी स्थितियों को कंट्रोल करने में मदद कर सकती हैं। वहीं, कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज या अधिक गंभीर हृदय संबंधी समस्याओं के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। सही समय पर इलाज और पता लगाने से सीवीडी को गंभीर होने से रोका जा सकता है और बच्चे के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है।

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