समाजवादी पार्टी होगी मजबूत! वजूद बचाने के लिए फिर एक हो सकता है मुलायम का कुनबा

लखनऊ। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) विधानसभा और लोकसभा गठबंधन में असफल होने के बाद अब अपने चाचा शिवपाल यादव की ओर अपना रुख कर सकते हैं। दरअसल, वर्तमान में दोनों को अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए एक दूसरे की जरूरत हैं। सपा संरक्षक भरसक प्रयास है कि एक बार शिवपाल और अखिलेश एक हो जाएं तो पार्टी मजबूत हो जाए।

अखिलेश ने 2017 में यादव और उच्च जाति का वोट लेने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन की, लेकिन वहां सफलता नहीं मिली। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने सारे गिले शिकवे भुलाकर बसपा के साथ यादव और दलित के नाम पर गठबंधन किया। अखिलेश का यह प्रयोग भी सफल नहीं हुआ। मुलायम सिंह यादव 2017 में कांग्रेस और 2019 में बसपा से गठबंधन के विरोधी रहे हैं, लेकिन अखिलेश ने उनके सुझावों को दरकिनार कर दिया।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा के राष्ट्रवाद और विकास ने सारे समीकरण ध्वस्त कर दिए हैं। शुरू से यादव वोट का मूल आधार मुलायम और शिवपाल ही रहे हैं। अखिलेश अभी तक अपना अकेला कोई ऐसा मुकाम भी नहीं बना पाए, जिस कारण पूरा वोट बैंक खुलकर उनकी ओर आ जाए।

अब यादव वोट सुशासन और राष्ट्रवाद के नाम पर छिटक रहा है। शिवपाल के पार्टी से हटने के बाद और मुलायम की सक्रिय राजनीति मे न होंने के कारण भी यादव वोट बैंक भी इधर-उधर हो रहा है। वह सत्ता की ओर खिसक रहा है। शिवपाल के सपा के साथ मिलने से सीटे भले न बढ़े लेकिन यादव वोट एक हो जाएगा और पार्टी भी मजबूत हो जाएगी। यही मुलायम भी चाहते हैं यही कारण है कि शिवपाल और अखिलेश के एक होने के सुर तेज होने लगे हैं।

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