आज है स्वर कोकिला लता दीदी की पुण्यतिथि, पूरा देश कर रहा नमन

New Delhi:  मेरी आवाज ही पहचान है मेरी…गाने की ये पंक्ति लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की पहचान है. जिनकी शक्ल से भले कोई उन्हें न पहचाने, लेकिन उनकी आवाज को कोई भूल नहीं सकता. आज 06 फरवरी के दिन ही पिछले साल स्वर कोकिला ने हमेशा-हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद ली थी. उन्हें इस दुनिया से गए पूरा एक साल बीत चुका है. वैसे तो उनकी जिंदगी एक खुली किताब की तरह रही, जिस बारे में उनके चाहनेवाले जरूर जानते हैं. लेकिन इसके बावजूद उनसे जुड़े कई अनसुने किस्से हैं, जिसका तमाम लोगों को पता ही नहीं है. ऐसे में आज हम उनकी पुण्यतिथि पर इस बारे में बताने वाले हैं.

लता मंगेशकर का पहला गाना कभी नहीं हुआ रिलीज, मिला एक्टिंग ब्रेक
आपको बता दें कि लता मंगेशकर ने अपना सबसे पहला गाना मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ के लिए गाया था. हालांकि, इसे बाद में ड्रॉप कर दिया गया और ये कभी रिलीज ही नहीं हुआ. उस गाने का नाम था- ‘Naachu Yaa Gade, Khelu Saari Mani Haus Bhaari’. हालांकि, बाद में उन्होंने इसी फिल्म से अपना एक्टिंग डेब्यू किया.

स्वर-कोकिला को क्रिकेट से था खासा लगाव
लता दीदी के बारे में तो लोग यही जानते हैं कि बहुत ही सुरीला गाती थी. लेकिन आपको बता दें कि उन्हें क्रिकेट से बेहद लगाव था. इसके अलावा वो टेनिस और फुटबॉल देखना भी खूब पसंद करती थी.

एक दिन स्कूल जाकर भी हासिल की 6 डॉक्टरेट डिग्री
स्वरकोकिला 5 साल की उम्र में पहली बार स्कूल गई. लेकिन वो दिन ही उनके लिए स्कूल का आखिरी दिन बन गया. क्योंकि परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी ठीक नहीं थी कि वो लता मंगेशकर के साथ-साथ आशा भोसले की पढ़ाई का भी खर्चा उठा पाते. ऐसे में लता दीदी ने अपना नाम कटवाकर बहन को पढ़ाने का फैसला किया. हालांकि, आगे चलकर उन्हें 6 अलग-अलग विश्वविद्यालय ने म्यूजिक में डॉक्टरेट की डिग्री दी.

लता दीदी थीं नॉन वेज की शौकीन
लता मंगेशकर गाने के साथ-साथ खाने की भी खूब शौकीन थी. उन्हें नॉन वेज खाना बहुत पसंद था. हालांकि, परिवार की माली हालत ठीक न होने की वजह से वो अपना पसंदीदा खाना नहीं खा पाती थी. साथ ही अनिल बिस्वास से गाना सीखने के लिए वो मुंबई के तारदेव से दादर तक पैदल चलकर जाती थी. ऐसे में उनके गुरु खुद ही नॉनवेज बनाकर उन्हें खिलाया करते थे.

12 सालों तक इस आर्टिस्ट के साथ चलती रही लता दीदी की लड़ाई
महान गायिका के गाने और खाने के शौक के साथ उनसे जुड़ा एक लड़ाई का किस्सा भी काफी मशहूर है. दरअसल, सन् 1950 में एस डी बर्मन के साथ उनकी लड़ाई हो गई थी, जो 1962 तक चलती रही. इस दौरान दोनों ने एक साथ काम भी नहीं किया.

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