गंगा के सबसे गंदी नदी होने का फैलाया गया भ्रम, ऐसा कुछ नहीं है: केंद्रीय मंत्री

झुंझुनूं: केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि कुछ लोगों ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते देश में भ्रम फैलाया कि गंगा सबसे मैली नदी है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है. उन्होंने दावा किया है कि गंगा जितनी लंबाई की विश्व की सबसे साफ 10 नदियों में शामिल है और इसमें भी उसका नंबर टॉप पर है क्योंकि अढ़ाई हजार किलोमीटर लंबी गंगा नदी में एक-दो जगहों पर ही गंगा की शुद्धता मानक स्तर के नीचे है.

उन्होंने कहा कि गंगोत्री से लेकर ऋषिकेश तक उन्होंने खुद नदी के पानी में राफ्टिंग की है. इस दूरी में गंगा नदी पूरी तरह से आचमन योग्य है. शेखावत रविवार को झुंझुनूं के दौरे पर रहे. उन्होंने यहां पर सम्मान समारोह में शिरकत की. इस कार्यक्रम के बाद मीडिया से रूबरू होते हुए उन्होंने नमामि गंगे अभियान के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि गंगा की अविरलता और निर्मलता को सुनिश्चित करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय काम कर रहा है.

हमारा फोकस है कि बेसिन एप्रोज वाली नदियों की भी शुद्धता निश्चित की जाए. इसके अलावा औद्योगिक और सीवरेज के पानी को बिना ट्रीटमेंट के ना बहाने को लेकर भी ध्यान दिया है. गजेंद्र सिंह शेखावत ने दावा कि आने वाले दो साल में नमामि गंगे अभियान का असर दिखने लगेगा. साथ ही उन्होंने गंगा के साफ होने के सवाल पर कहा कि गंगा की अविरलता और निर्मलता की कोई भी तारीख तय नहीं हो सकती. यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन इसमें हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझेगा. तो ही इस दिशा में कोई काम हो सकता है. इसे जन आंदोलन बनाना पड़ेगा.

इससे पहले झुंझुनूं पहुंचने पर सांसद नरेंद्रकुमार, भाजपा जिलाध्यक्ष पवन मावंडिया, सीकर भाजपा जिलाध्यक्ष विष्णु चेतानी, व्यापार संघ के जिलाध्यक्ष सेवाराम गुप्ता, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज आदि के नेतृत्व में शेखावत का स्वागत किया गया.

मिशन मोड पर शुरू किया है काम
पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हुए गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि 1984 से गंगा को लेकर प्रयास प्रारंभ हुए थे. फौरी तौर पर कोशिश होने के कारण यह काम सिरे नहीं चढ़े. वहीं वॉटर और रिवर्स स्टेट सब्जेक्ट्स होने के कारण भी दिक्कत आई. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले पांच सालों में इस काम को मिशन मोड पर लिया है और उसका परिणाम आने वाले दो साल में दिखने लगेगा.

यमुना लाने के लिए लगाई जाने वाली पाइपलाइन पर आपत्ति
इस मौके पर गजेंद्र सिंह शेखावत ने शेखावाटी को मिलने वाले हरियाणा से यमुना के पानी को लेकर भी अपना बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि यमुना नहर का पानी पहले कैनाल के जरिए शेखावाटी में आना था लेकिन राज्य सरकार ने जो प्रस्ताव भिजवाया उसमें एक पाइपलाइन के जरिए लाने का प्रस्ताव दिया है. जिसकी लागत बेहद ज्यादा आ रही है इसलिए केंद्र ने वो प्रस्ताव राज्य सरकार को वापिस भिजवाया है ताकि वो नए सिरे से दूसरे जरिए से पानी लाने का प्रस्ताव भिजवाए. उन्होंने यह भी साफ किया है कि हरियाणा और राजस्थान में पानी को शेखावाटी में लाने के लिए एमओयू साइन हो गया है.

2024 तक हर घर को मिलेगा पीने का पानी
पत्रकारों से बातचीत करते हुए गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 तक देश के हर घर तक पीने का पानी नल के जरिए पहुंचाने का सपना देखा है. जिसे पूरा करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय पूरी कोशिश कर रहा है. आर्थिक मंदी वैश्विक समस्या, भारत फिर भी दृढता के साथ खड़े सवाल के जवाब में गजेंद्र सिंह शेखावत ने देश में आर्थिक मंदी पर भी जवाब दिया. उन्होंने कहा कि देश में आर्थिक मंदी है. जो निश्चित रूप से स्वीकार की जा सकती है लेकिन केवल भारत में ही नहीं, विश्व में आर्थिक मंदी चल रही है.

यूरोप के एक-दो देशों को छोड़ दें तो शेष सभी देश या तो स्टेटिक ग्रोथ रेट पर चल रहे हैं या फिर नगेटिव ग्रोथ रेट पर चल रहे हैं. चाइना की ग्रोथ रेट 30 सालों तक दो डिजिट में थी. वो भी पांच की ग्रोथ रेट नहीं बनाए रख पा रही है. अमेरिका गत दिनों ही आर्थिक मंदी से संभला था. वह फिर से असहज हो गया है. बावजूद इसके देश के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत आज भी विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. जिसके पीछे कारण है कि जिस तरह से कॉरपोरेट इंवेस्टमेट बढ़ा है, एमएसएमई सेक्टर में राहत दी गई है और ऋण प्रवाह के लिए बैंकों का रिऑर्गेनाइशन किया गया. उसके कारण आने वाले क्वाटर में असर दिखेगा.

चीन का आयात आमजन की जागरूकता से ही घट सकता है
एक सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने माना कि आज भी देश को जो माल निर्यात हो रहा है. उसका पांच गुना माल चीन से भारत आ रहा है लेकिन यह केवल हाल ही में हुई बढ़ोतरी नहीं है. यह विषय काफी लंबे समय से चल रहा है. इसके लिए सरकार से ज्यादा आमजन को करना है. यदि उपभोक्ता देश की सोचेगा और अमेरिका की तरह यहां के नागरिक भी पहल करेंगे तो यह व्यवस्था बदली जा सकती है.

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