UP News: स्‍वामी प्रसाद मौर्या ने सपा के राष्‍ट्रीय महासचिव पद से दिया इस्‍तीफा

UP News: स्‍वामी प्रसाद मौर्या ने सपा के राष्‍ट्रीय महासचिव पद से दिया इस्‍तीफा

UP: विवादित बयानों को लेकर चर्चा में बने रहने वाले समाजवादी पार्टी के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इस बारे में उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को एक लंबा चौड़ा पत्र भी लिखा है. इसमें उन्होंने वे कारण बताएं हैं, जिसकी वजह से वह पार्टी से इस्तीफा दे रहे हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने खत में लिखा है कि वह पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में लगे रहेंगे.

सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर लेटर पोस्ट कर उन्होंने कई बातें साझा की हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने लेटर को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के ‘एक्स’ हैंडल पर टैग किया है. उन्होंने पार्टी में अपनी भूमिका का भी जिक्र किया है. बता दें कि 2022 विधानसभा चुनाव खत्म होने के कुछ महीने बाद स्वामी प्रसाद मौर्य को समाजवादी पार्टी ने MLC बनाकर विधान परिषद भेजा था. इसके बाद उन्हें राष्ट्रीय महासचिव के पद से नवाजा गया था. हालांकि मंगलवार की शाम उन्होंने राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने लेटर में कई महापुरुषों का जिक्र किया है. उन्होंने उनके नारों के बारे में लिखते हुए कहा है कि जबसे मैं समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हुआ, लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की. सपा में शामिल होने के दिन ही मैंने नारा दिया था ‘पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है’. उन्होंने लिखा कि हमारे महापुरुषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थी.भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ की बात की तो डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा कि, ‘सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावे सौ में साठ’, शहीद जगदेव बाबू कुशवाहा और रामस्वरूप वर्मा ने कहा था, ‘सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है’, इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन के महानायक कांशीराम का भी वही नारा था, ’85 बनाम 15 का’.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने लेटर के जरिए बताया कि उन्होंने पार्टी को जातिवार जनगणना का सुझाव दिया था. वह लिखते हैं कि पार्टी को ठोस जनाधार देने के लिए जनवरी-फरवरी 2023 में मैंने आपके पास सुझाव रखा कि जातिवार जनगणना कराने, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों के आरक्षण को बचाने, बेरोजगारी और बढ़ी हुई महंगाई, किसानों की समस्याओं व लाभकारी मूल्य दिलाने.

लोकतंत्र व संविधान को बचाने, देश की राष्ट्रीय संपत्तियों को निजी हाथ में बेचे जाने के विरोध में प्रदेश व्यापी भ्रमण कार्यक्रम के लिए रथ यात्रा निकालने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर आपने (अखिलेश यादव) सहमति देते हुए कहा था कि, ‘होली के बाद इस यात्रा को निकाला जाएगा’. आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया. नेतृत्व की मंशा के अनुरूप मैंने पुनः कहना उचित नहीं समझा.

स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बयानों में हिंदू देवी-देवताओं पर टिप्पणी करते नजर आए. इस पर उन्होंने लेटर में लिखा है कि मैंने ढोंग-ढकोसला, पाखंड-आडंबर पर प्रहार किया तो भी यही लोग फिर इसी प्रकार की बात कहते नजर आए, हमें इसका भी मलाल नहीं, क्योंकि मैं तो भारतीय संविधान के निर्देश के क्रम में लोगों को वैज्ञानिक सोच के साथ खड़ा कर लोगों को सपा से जोड़ने की अभियान में लगा रहा.

मुझे मिली हत्या की धमकी, बाल-बाल बचा

स्वामी प्रसाद मौर्य लिखते हैं कि मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने आदि लगभग दो दर्जन धमकियों और हत्या के लिए 51 करोड़, 51 लाख, 21 लाख, 11 लाख, 10 लाख आदि भिन्न-भिन्न रकम देने की सुपारी भी दी गई. अनेकों बार जानलेवा हमले भी हुए. यह बात दीगर है कि प्रत्येक बार में बाल-बाल बचता चला गया. उल्टे सत्ताधारियों द्वारा मेरे खिलाफ अनेको FIR भी दर्ज कराई गई, लेकिन अपनी सुरक्षा की बिना चिंता किए हुए में अपने अभियान में निरंतर चलता रहा.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने लेटर में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर निशाना साधा. लेटर में उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया. उन्होंने लिखा कि मुझे हैरानी तब हुई जब पार्टी के वरिष्ठतम नेता चुप रहने के बजाय मौर्य जी का निजी बयान कह करके कार्यकर्त्ताओं के हौसले को तोड़ने की कोशिश की. मैं नहीं समझ पाया एक राष्ट्रीय महासचिव में हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव व नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है. वह सवाल करते हैं कि एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है?

स्वामी प्रसाद मौर्य लेटर में लिखते हैं कि मेरे प्रयास से आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों का रुझान समाजवादी पार्टी के तरफ बढ़ा है. बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास व वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है तो मैं समझता हूं कि ऐसे भेदभाव पूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है. इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से में त्यागपत्र दे रहा हूं.

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