मराठा आरक्षण बिल को तो मिली मंजूरी, पर इस मुद्दे पर अटका मामला
Maharastra: मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण देने वाले बिल को महाराष्ट्र विधानसभा में सर्वसम्मति से मंजूरी मिल गई है. मराठा समुदाय को अब शिक्षा और सरकारी नौकरियों में दस फीसदी का आरक्षण मिल सकेगा. राज्य सरकार ने मराठा आरक्षण के लिए आज विशेष सत्र बुलाया था. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इसमें मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए विधेयक लाने का प्रस्ताव रखा. सदन ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
पिछड़ा वर्ग आयोग ने कहा है कि मराठा समुदाय पिछड़ा हुआ है. हालांकि, मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे मनोज जारांगे ने इस मसौदे पर नाराजगी जताई है.
मनोज जारांगे पाटिल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सेजसॉयरे एक्ट लागू नहीं होने पर कल (21 फरवरी) से एक और आंदोलन की घोषणा की थी.
कुनबी प्रमाण पत्र पेश करने पर ही ये आरक्षण मिल सकेगा. इसके तहत सेजसोयरे एक्ट लागू करने की मांग की गई है.
मांग के अनुसार नहीं है आरक्षण- जरांगे
ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, मनोज जरांगे पाटिल ने मंगलवार को महाराष्ट्र विधानसभा में पेश और पारित किए गए आरक्षण विधेयक का स्वागत किया, लेकिन तर्क दिया कि जो आरक्षण प्रस्तावित किया गया है वह समुदाय की मांग के अनुसार नहीं है। जरांगे ने कहा कि हमें आरक्षण चाहिए जिसके हम हकदार हैं। उन लोगों को ओबीसी के तहत आरक्षण दें जिनके कुनबी होने का प्रमाण मिल गया है। और जिनके पास कुनबी होने का प्रमाण नहीं है, उनके लिए ‘सेज सोयरे’ कानून पारित करें।
मनोज जरांगे पाटिल ने बुधवार को दोपहर 12 बजे मराठा समुदाय की बैठक बुलाई है। उन्होंने कहा कि मैं अधिक से अधिक लोगों से बैठक के लिए अंतरवली सारती पहुंचने की अपील करता हूं। मैं सेज सोयरे को लागू करने की अपनी मांग पर कायम। उन्होंने कहा कि मैं आरक्षण का स्वागत करता हूं लेकिन जो आरक्षण दिया गया है वह हमारी मांग के अनुरूप नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा दिए गए आरक्षण से मराठा के केवल 100 -150 लोगों को लाभ होगा, हमारे लोग आरक्षण से वंचित रहेंगे। इसलिए मैं सेज सोयरे को लागू करने की मांग कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि आंदोलन के अगले दौर की घोषणा कल की जाएगी।
मराठा समुदाय की मदद करना है उद्देश्य- सीएम शिंदे
विधानसभा के विशेष सत्र में राज्य के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि इस सत्र का उद्देश्य मराठा समुदाय की मदद करना है। उन्होंने कहा कि हम राज्य में ओबीसी के मौजूदा कोटा को छुए बिना मराठा समुदाय को आरक्षण देना चाहते हैं। विधेयक में कहा गया है कि महाराष्ट्र की कुल आबादी में मराठों की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत है। इसमें कहा गया है कि बड़ी संख्या में जातियां और समूह पहले से ही आरक्षित श्रेणी में हैं, जिन्हें कुल मिलाकर लगभग 52 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। इसमें कहा गया है कि मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में रखना पूरी तरह से अनुचित होगा।
मराठा आरक्षण की लड़ाई क्या है?
दरअसल राज्य में मराठा आरक्षण की लड़ाई लंबे समय से लड़ी जा रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार ने इस ओर कोई कदम नहीं उठाया. राज्य सरकार तो मराठाओं को फिर से आरक्षण देने की पूरी कोशिश में हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा की जो दीवार खड़ी कर रखी है, उसे भेद पाना बेहद मुश्किल है.
साल 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने कानून बनाकर मराठा समुदाय को 13% आरक्षण दिया था, मगर मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी और कहा कि आरक्षण को लेकर 50 फीसदी की सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने साल 1992 में आरक्षण की सीमा को अधिकतम 50 फीसदी तक सीमित कर दिया था.
आखिर मराठा आरक्षण क्यों मांग रहे हैं?
मराठा समुदाय के लोगों की मांग है कि हमें नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया जाए, जैसे पिछड़ी जातियों को मिला हुआ है. मराठाओं का दावा है कि समुदाय में एक छोटा तबका है तो समाज में ऊंची पैठ रखता है, लेकिन समुदाय के बाकी लोग गरीबी में जी रहे हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट इस बात से इनकार कर चुका है कि मराठा समुदाय पिछड़ा हुआ है.
सु्प्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि मराठाओं को आरक्षण लागू करने की जरूरत नहीं है. संविधान के आर्टिकल 16 के तहत अन्य पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया गया है. यानि उन लोगों के लिए सीटें आरक्षित रखी गई हैं, जो सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर पिछड़ी हुई हैं.
मराठों की आर्थिक स्थिति क्या है?
मराठा समुदाय राज्य की कुल आबादी का करीब 30 फीसदी है. सामाजिक और आर्थिक दोनों रूप से ये समुदाय काफी पिछड़ा हुआ है. खासकर उच्च शिक्षा संस्थानों में मराठा समुदाय का अधिक प्रतिनिधित्व नहीं है. नौकरियों और उद्योग के क्षेत्र में भी मराठा समुदाय का यही हाल है. यहां भी प्रतिनिधित्व काफी कम है. हालांकि मराठाओं का एक तबका ऐसा भी है जो आर्थिक रूप से संपन्न है. इन लोगों के पास जमीन और राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण है.
साल 2018 में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (SBCC) की एक रिपोर्ट बताती है कि महाराष्ट्र में करीब 37.28 फीसदी मराठा गरीबी रेखा (BPL) से नीचे रह रहे हैं. इस समुदाय के 76.86 फीसदी परिवार कृषि और कृषि श्रम पर निर्भर हैं. बड़ी बात यह है कि रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 से 2018 तक 23.56 फीसदी यानि करीब 2152 मराठा समुदाय के किसानों ने आत्महत्या की. आत्महत्या का मुख्य कारण कर्ज और फसल की बर्बादी थी.
ताजा आंदोलन का नेता कौन?
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर ताजा आंदोलन मराठा मोर्चा के संयोजक मनोज जारांगे के नेतृत्व में चल रहा है. जारांगे ने सरकार को प्रस्ताव दिया है कि सरकार को मराठों को कुनबी समुदाय में शामिल कर देना चाहिए, जो ओबीसी कोटा में आता है. मनोज जारांगे पाटिल पिछले करीब 13 सालों से मराठा आरक्षण को लेकर काम कर रहे हैं. वह एक समाजसेवी हैं. जारांगे बीड के मटोरी के रहने वाले हैं, लेकिन अब जालना के अंकुशनगर में रहते हैं. कहा जाता है कि मराठा आंदोलन के लिए उन्होंने अपनी जमीन भी बेच दी.
आरक्षण की मांग को लेकर सरकार की नाक में नकेल कसने के लिए जारांगे ने मार्च निकाले, आमरण अनशन किया, सड़क जाम की. वह साल 2011 से मराठा आरक्षण आंदोलन में सक्रिय हैं. मनोज शुरुआत में कांग्रेस से जुड़े, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर अपना शिवबा संगठन बनाया. मनोज के परिवार में पत्नी, चार बच्चे, तीन भाई और माता-पिता हैं.
सेज-सोयारे ‘ का क्या मतलब है?
‘सेज सोयरे’ शब्द में आवेदक के पिता, दादा, परदादा और एक ही जाति में विवाह से बनी पिछली पीढ़ियों के रिश्तेदार शामिल हैं. इसमें कहा गया है कि इसमें एक ही जाति के भीतर विवाह से बने संबंध शामिल होंगे.
नियम के मुताबिक़ ‘सेज सोयरे’ मराठा समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के रिश्तेदार थे जिनके कुनबी होने के रिकॉर्ड पाए गए हैं और उन्हें कुनबी जाति प्रमाण पत्र दिया जाएगा.