चचा- भतीजे में तीन साल की तनातनी के बाद अब सुलह की गुंजाइश भी खत्म?

लखनऊ. समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और उनके चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) के बीच पिछले तीन साल से चली आ रही तनातनी का कड़वा पटाक्षेप होता दिख रहा है. समाजवादी पार्टी ने शिवपाल यादव की विधानसभा सदस्यता रद्द करने के लिए याचिका दाखिल की है. समाजवादी पार्टी की तरफ से नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी (Ramgovind Chaudhary) ने विधानसभा अध्यक्ष से दल-बदल कानून के तहत उनकी सदस्यता निरस्त करने के लिए याचिका प्रेषित की है. जिसके बाद कहा जा रहा है कि अब यादव परिवार के बीच सुलह-समझौते की सभी गुंजाइश ख़त्म हो गई है.

वैसे तो राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं है, लेकिन अखिलेश यादव के इस कदम से एक बात साफ है कि उन्होंने चाचा शिवपाल से किसी भी तरह के समझौते या गठबंधन की गुंजाइश की अटकलों पर विराम लगा दिया हैं. बता दें समाजवादी पार्टी के टिकट पर इटावा के जसवंतनगर सीट से शिवपाल यादव विधायक हैं. पार्टी से बगावत कर अलग पार्टी बनाने के बावजूद अखिलेश यादव ने उनकी सदस्यता को लेकर कोई फैसला नहीं किया था. तब माना जा रहा था कि दोनों के बीच सुलह की सम्भावना बची है.

लोकसभा चुनाव में यादव परिवार की हार में शिवपाल की भूमिका अहम

हालांकि अलग पार्टी बनाने के बावजूद शिवपाल यादव प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष नहीं बने क्योंकि वे समाजवादी पार्टी से विधायक हैं. लेकिन इसके बाद भी शिवपाल यादव ने लोकसभा चुनाव अलग से लड़ा. खुद फिरोजाबाद से चुनाव लड़े. हालांकि वे खुद तो नहीं जीत सके लेकिन भतीजे अक्षय की हार में अहम भूमिका निभाई. इतना ही यादव परिवार के गढ़ कन्नौज व बदायूं में भी हार के पीछे शिवपाल का अलग होना प्रमुख वजह रही.

2016 में शुरू हुई तनातनी

बता दें यूपी विधानसभा चुनाव से पहले 2016 में यादव परिवार में महाभारत की शुरुआत हुई. बात इतनी बढ़ी की अखिलेश ने समाजवादी पार्टी पर एकाधिकार कर लिया. उसके बाद चुनाव में समाजवादी पार्टी के हार के बाद शिवपाल ने बयानबाजी शुरू कर दी. इसके बाद उन्होंने समाजवादी मोर्चे का गठन किया और फिर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन किया. इस बीच अखिलेश और शिवपाल के बीच सुलह की कई कोशिशें हुईं, लेकिन सभी नाकाम साबित हुईं.

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