CAA के विरोध में क्यों हैं नॉर्थ ईस्ट के राज्य, कैसे प्रभावित करेगा ये कानून
New Delhi: देशभर में CAA लागू हो गया है। गृह मंत्रालय की ओर से इसे लेकर नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है। भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम 5 साल पहले ही दोनों सदनों से पारित हो गया था। लेकिन यह अभी तक इस कानून को लेकर मामला अटका रहा। हालांकि, आज सरकार ने इस कानून को लेकर फाइनल मुहर लगा दी। साल 2019 में सीएए पारित होने के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था। विशेषकर पूर्वोत्तर के राज्यों में सीएए का सबसे ज्यादा विरोध देखने को मिला था। पूर्वोत्तर के सात राज्य सीएए कानून से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे। वहां तोड़फोड़ की कारण करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ था।
भारत के पूर्वोत्तर में बसे आदिवासी लोग सीएए के विरोध में हैं। इन राज्यों में असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड शामिल हैं।पूर्वोत्तर के पास सीएए विरोध की एक दूसरी वजह है। उन्हें लगता है कि अगर बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिलती है, तो उनके राज्य के संसाधन बंट जाएंगे। एक बड़े वर्ग का यह भी मानना है पूर्वोत्तर के मूल रहवासियों के सामने अपनी पहचान और अजीविका का संकट पैदा हो जाएगा।
पूर्वोत्तर राज्यों में ज्यादा बसे शरणार्थी
भारत में पूर्वोत्तर के राज्य इस समय अल्पसंख्यक बंगाली हिंदुओं का गढ़ बन चुके हैं। इसका कारण भी सामने आया है। असल में पाकिस्तान के पूर्वी क्षेत्र में बड़ी तादाद में बंगाली भाषी लोग बसे हुए थे, जो लगातार हिंसा का शिकार हो रहे थे। वहां युद्ध हुआ और वह क्षेत्र पाकिस्तान से आजाद होकर और बांग्लादेश नाम से अलग बन गया। पर कुछ ही समय बाद बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर अत्याचार होने लगे। पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यक अत्याचार से परेशान होकर भारत आकर रहने लगे और यहीं बस गए। वैसे तो इन लोगों को भारत के अलग-अलग राज्यों में बसाया जा रहा था। पर नॉर्थ-ईस्ट का कल्चर इन्हें ज्यादा रास आया। तभी से यह लोग यहां बसने लगे। पूर्वोत्तर राज्यों में बसने की एक यह वजह भी हो सकती है कि इन राज्यों के बॉर्डर बांग्लादेश से सटे हुए हैं। क्या बदलाव होगा? सीएए से जो सबसे बड़ा बदलाव होगा वह पुराने नागरिकता के कानून के संशोधन पर होगा। अभी तक भारत में नागरिकता पाने के लिए भारत में 11 साल तक रहना जरूरी। लेकिन जो नागरिकता संशोधित कानून होगा उसमें यह अवधि कम कर 6 साल कर दी गई है। मेघालय में आम तौर पर तो गारो और जैंतिया जैसे आदिवासी समुदाय मूल निवासी हैं। पर बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों के आने के बाद से वहां के मूल आदिवासी पीछे रह गए हैं। इसी प्रकार त्रिपुरा में बोरोक समुदाय मूल निवासी हैं। लेकिन वहां भी बांग्ला शरणार्थी भर चुके हैं।
इन राज्यों में सरकारी नौकरियों में बड़े पद भी उनके पास चले गए हैं। और अभी अगर सीएए लागू किया जाता है तो मूल निवासियों का प्रतिनिधित्व इन राज्यों से पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। दूसरे देशों के अल्पसंख्यक उनके संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे। इसी डर के कारण पूर्वोत्तर के लोग सीएए का जमकर विरोध कर रहें हैं। असम में अभी 20 लाख से अधिक बांग्लादेशी अल्पसंख्यक अवैध रूप से रह रहे हैं. यह दावा वर्ष 2019 में असम के स्थानीय संगठन कृषक मुक्ति संग्राम कमेटी ने किया था। ऐसे ही हालात बाकी के पूर्वोत्तर राज्यों के भी हैं।