देश में पहले भी हो चुका है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’
New Delhi: वन नेशन-वन इलेक्शन यानी एक देश, एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। कमेटी के सदस्यों ने राष्ट्रपति भवन जाकर रिपोर्ट सौंपी। वन नेशन वन इलेक्शन पर कमेटी ने 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में 2029 में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की गई है।
अगर केंद्र सरकार देश में ‘एक देश एक चुनाव’ को लागू करती है तो ये कोई पहली बार नहीं होगा जब इसे तरह से देश में चुनाव कराए जाएंगे. इससे पहले वर्ष 1952, 1957, 1962, 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे. 1968 और 1969 में कई विधानसभा समय से पहले भंग भी किए गए. वहीं, 1970 में लोकसभा को समय से पहले भंग किया था. 1970 के बाद ही ‘एक देश, एक चुनाव’ की परंपरा खत्म हो गई.
क्या होगा इससे फायदा
देश में ‘एक देश एक चुनाव’ की परंपरा को लागू करने से चुनाव में पैसों की बर्बादी बचेगी. साथ ही राज्यों के मुताबिक बार बार चुनाव कराने की चुनौती से भी मुक्ति मिलेगी. जानकारों का मानना है कि ऐसा करने से चुनाव में इस्तेमाल होने वाले काले धन पर भी लगाम लगाया जा सकता है. साथ ही साथ सरकारी संसाधनों का उपयोग सीमित होगा. और इससे देश में विकास कार्यों की रफ्तार पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा.
2029 में एकसाथ चुनाव कराने की सिफारिश
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हुए तो यह 2029 से ही लागू होगा। साथ ही इसके लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे। मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभाओं का कार्यकाल 6 महीने बढ़ाकर जून 2029 तक किया जाए। उसके बाद सभी राज्यों में एक साथ विधानसभा-लोकसभा चुनाव हो सकेंगे।