मणिपुर में एक महीने से जारी हिंसा थम क्यों नहीं रही है?

New Delhi: मणिपुर में जारी हिंसा को एक महीना होने वाला है लेकिन माहौल अभी तक शांत होता नहीं दिख रहा है। हालात ये हैं कि हिंसा प्रभावित मणिपुर में शांति बहाल करने के मिशन पर खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को जाना पड़ा है। मणिपुर करीब एक महीने से जातीय हिंसा से प्रभावित है और राज्य में इस दौरान झड़पों में इजाफा होता जा रहा है।

मणिपुर में कैसे हुई थी हिंसा की शुरुआत?

कुकी आदिवासियों ने गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिये जाने के विरोध में 3 मई को एकजुटता मार्च निकाली थी।इसके बाद एक हफ्ते से ज्यादा समय तक राज्य में हिंसक झड़पें होती रहीं, जिसमें करीब 70 लोगों की मौत हो गई थी।22 मई को राजधानी इंफाल के एक स्थानीय बाजार में दोनों समुदाय के लोगों के बीच मारपीट के बाद दोबारा हिंसा भड़क गई थी और कर्फ्यू लगाना पड़ गया था।

हिंसा का प्रमुख कारण क्या है?

मैतई समुदाय की मणिपुर की कुल आबादी में करीब 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है।आदिवासियों को डर है कि अगर मैतेई समुदाय को ST वर्ग का दर्जा मिला तो वह आदिवासियों के लिए आरक्षित 10 प्रतिशत वन्य क्षेत्र के अलावा उनकी अन्य जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लेगा।कुकी आदिवासी समुदाय को आरक्षित वन भूमि से बेदखल करने को लेकर पहले भी हिंसक झड़पें हुई हैं, जिसके कारण राज्य में छोटे-बड़े आंदोलन होते रहे हैं।

कुकी समुदाय का आरोप है कि बहुसंख्यक मैतेई समुदाय द्वारा उनके खिलाफ राज्य मशीनरी का इस्तेमाल किया जा रहा है।कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) के प्रवक्ता सेलेन हाओकिप ने कहा कि मणिपुर में सुरक्षा बलों के सहयोग से रामबाई तेंगगोल और मैतेई लीपुन जैसे संगठन लगातार कमजोर और अल्पसंख्यक कुकी समुदाय के लोगों पर हमला कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि यह हिंसा इतने दिनों से चल रही है क्योंकि यह राज्य द्वारा प्रायोजित है।

कुकी समुदाय के आरोपों के विरोध में मैतेई समुदाय ने यह तर्क दिया गया है कि कुकी समुदाय एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र की मांग को लेकर दबाव बनाने के लिए हिंसा को लगातार उकसा रहा है।जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में असिस्टेंट प्रोफेसर बिमोल एकोइजाम ने इंडिया टुडे को बताया, “कुकी एक ऐसे क्षेत्र पर नियंत्रण चाहते हैं, जहां से मैतेई समुदाय को लगभग साफ कर दिया गया है। यह राज्य में हिंसा की प्रकृति पर बहुत कुछ कहता है।”

मणिपुर में पहले कब-कब हुए हैं जातीय संघर्ष?

मणिपुर में जातीय संघर्ष नए नहीं हैं और पिछले कुछ वर्षों में हुई हिंसा की घटनाओं में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।1993 में कुकी-नागा संघर्ष में करीब 400 लोग मारे गए थे। उसी साल मैतेई और मैतेई पंगल (मणिपुर मुस्लिम) के बीच हिंसा हुई थी, जिसमें लगभग 100 लोग मारे गए थे।1997 से 98 तक चले कुकी-पैते संघर्ष में भी कथित तौर पर 350 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।

अब आगे क्या किया जाना चाहिए?

विशेषज्ञों का कहना है कि यह समय मैतेई समुदाय को ST का दर्जा देने या प्रशासनिक क्षेत्र के समाधान के बारे में बात करने का नहीं है।उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में पूरा जोर हिंसा को रोकने के लिए लगाया जाना चाहिए, जिससे हिंसाग्रस्त इलाकों में फंसे लोगों की मदद की जा सके।पिछले एक महीने से हिंसा को देख रहे लोगों में सरकार और सुरक्षा बलों के प्रति विश्वास पैदा करना भी एक बड़ी चुनौती है।

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