लखीमपुर में हिंसा के बाद यूपी में रफ्तार पकड़ सकता है किसान आंदोलन

 
अजय कुमार,लखनऊ
      आखिरकार उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर खीरी में वो दर्दनाक मंजर दिखाई पड़ ही हुआ जिसके लिए कथित किसान नेता और उनके पीछे लामबंद सियासी शक्तियां लम्बे समय से ‘पटकथा’ लिख रही थीं। नये कृषि कानून के विरोध के नाम पर चल रहे आंदोलन में फैली हिंसा और अराजकता ने चार किसानों, तीन बीजेपी कार्यकताआंे और यह वाहन चालक को मौत की नींद सुला दिया। गलती किसकी थी, यह जांच होती रहेगी, लेकिन जिनकी जान चली गई,वह तो वापस नहीं आएगी। 26 जनवरी दिल्ली में किसान आंदोलन के नाम पर की गई हिंसा के बाद यह दूसरी बार देखने को मिला जब किसान किसी की जान के प्यासे हो गए। यह सब इस लिए हुआ क्योंकि नया कृषि कानून,जो अभी लागू ही नहीं हुआ है,उसकी आड़ में किसानों को लम्बे समय से भड़काया जा रहा था। मुट्ठी भर कथित किसान नेताओं के हौसले मंसूबे इतने खतरनाक नहीं होते यदि उन्हें विदेश से पैसा और देश में कुछ दलों और नेताओं से सियासी संरक्षण नहीं मिल रहा होता। आठ लोगों की मौत के गुनाहागार पकड़ में आएंगे या फिर उन्हें उनके कृत्य की सजा मिल पाएगी,इसकी संभावना भी नहीं के बराबर रहेगी। वहीं दूसरी तरफ लखीमपुर की घटना के बाद उम्मीद यह जताई जाने लगी है कि यूपी में भी किसान आंदोलन रफ्तार पकड़ सकता है। बता दें कृषि कानूनों और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की टिप्पणी का विरोध कर रहे किसानों और मंत्री के बेटे के बीच रविवार को हिंसक टकराव में आठ लोगों की मौत के बाद उत्तर प्रदेश में बवाल मचा हुआ है।
    सबसे दुख की बात यह है कि गैर बीजेपी दलों को चार किसानों की मौत तो दिखाई दे रही है,जिसके लिए वह वह मोदी-योगी को कोस भी रहे हैं,परंतु इतना असंवेदनशील कोई  कैसे हो सकता है कि चार किसानों की मौत पर तो यह नेता बड़े-बड़े आंसू बहा रहे हैं,लेकिन समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से लेकर बसपा सुप्रीमों मायावती,कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा,आम आदमी पार्टी के नेता और सांसद संजय सिंह का दिल जरा भी नहीं पसीजा। राजनीति मंे विचारधारा की लड़ाई को तो मंजूरी मिल सकती है,लेकिन किसी की मौत पर कोई नेता संवेदना व्यक्त करने तक की भी हिम्मत नहीं जुटा पाए तो इससे अधिक राजनीति का स्तर क्या गिर सकता है। ऐसा तो नहीं है कि बीजेपी कार्यकर्ता होना गुनाह है।
   बहरहाल,लखीमपुर हिंसा में भले ही आठ लोगों को जान से हाथ धोना पड़ गया हो,लेकिन इससे इत्तर अब इस हिंसा ही आड़ में सियासत भी गरमाने की कोशिश तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में यह हिंसा बड़ा मुद्दा बन सकता है। खासकर,भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत जो लम्बे समय से उत्तर प्रदेश में अपने आंदोलन को तेज करने के चक्कर में लगे थे,उनकी सक्रियता अचानक बढ़ गई है। टिकैत भड़काऊ बयानबाजी करते हुए कह रहे हैं कि अपने हक के लिए हम मुगलों और फिरंगियों के आगे नहीं झुके। किसान मर सकता है,लेकिन डरने वाला नहीं है। हॉ,इसके साथ टिकैत ने किसानो से शांति बनाए रखने की अपील जरूर की है,मगर सच्चाई यह भी है कि यदि टिकैत किसानों को इस हद तक भड़काते नहीं तो चार किसानों को उकसावे के चलते अपनी जान नहीं गंवाना पड़ती। वैसे चार किसानों की मौत एक तरह का मैसेज भी देती है कि किसान हो या फिर और कोई इन्हें कभी भी किसी आंदोलन के समय नेताओं के भड़कावे में आकर इतना आक्रमक नहीं हो जाना चाहिए की जान से ही हाथ धोना पड़ जाए। क्योंकि जिन किसानों की मौत हुई है,उस पर पूरे देश में सियासत तो खूब होगी,लेकिन इन किसानों जिन्होंने अपनी जान गंवा दी है,उसके परिवार वालों को इसका खामियाजा स्वयं भुगतना पड़ेगा। कुछ दिनों तक तो अवश्य मरने वाले किसानों के परिवार वालों की चौखट पर हर किस्म के नेता अपनी सियासत चकमाने के लिए पहुंच जाएंगे,लेकिन बाद में ऐसे परिवार वालों पर जो विपदा टूटेगी,उसका उन्हें अकेले ही सामाना करना पड़ेगा। बाद यहीं तक सीमित नहीं है। यह कड़वा सच है कि दशकों से तमाम आंदोलन के दौरान लोगों को जान हाथ धोेना पड़ता रहा हैं,लेकिन जब किसी आंदोलन के पीछे का मकसद ही सियासी हो तो फिर ऐसे आंदोलनों से थोड़ी दूरी बनाकर चलना ही बेहतर रहता है। अब यह इतिफाक तो नहीं हो सकता है कि किसान आंदोलन में खालिस्तान समर्थक नजर आएं। ट्विटर पर कई लोगों ने रविवार के खूनी संघर्ष की एक फोटो शेयर की है। इनमें प्रदर्शनकारी और पुलिसकर्मी नजर आ रहे हैं। एक पुलिस अधिकारी किसी से फोन पर बात करता हुआ दिख रहा है। उसके बगल में नीली पगड़ी पहने एक शख्स है जिसकी सफेद टी-शर्ट पर जरनैल सिंह भिंडरांवाले की फोटो छपी दिख रही है। कुछ हैंडल्स से इस टी-शर्ट के पीछे का हिस्सा भी शेयर किया है जिसपर खालिस्तान समर्थन में एक स्लोगन लिखा था। एक वीडियो भी वायरल हैं जिसमें कुछ लोग खालिस्तान के समर्थन में नारेबाजी करते नजर आ रहे हैं।
   उधर,हिंसा में 8 लोगों की मौत के बाद विपक्षी दलों ने योगी आदित्यनाथ सरकार को घेरने की पूरी तैयारी कर ली है। लखीमपुर नेताओं का पिकनिक स्पाट बन गया है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लखीमपुर खीरी जाने से रोका गया तो वह कार्यकर्ताओं संग धरने पर बैठ गए। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की भी पुलिस से तीखी बहस हुई जिसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया। बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने भी किसानों की हत्या को अक्षम्य बताते हुए सीएम से कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

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