लिंगायत मामला: मोहन भागवत बोले-संप्रदाय के नाम पर बांटने वालों की प्रवृति राक्षस जैसी

नई दिल्ली: कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिद्धारमैया सरकार की ओर से लिंगायत समाज को अलग धर्म की मान्यता देने के फैसले पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने नाराजगी जाहिर की है. नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम मोहन भागवत ने कहा कि वे एक ही धर्म के लोगों को बांटा जा रहा है. हिंदुओं को संप्रदाय में बांटा जा रहा है, जो किसी भी देश और समाज के लिए घातक है. मोहन भागवत ने कहा, ‘भेद के आधार पर दूसरो को चूस कर खाना राक्षसी प्रवृत्ति है, राक्षसी धर्म है. उनलोगों को भगवान ने ऐसा ही बनाया है और वह ऐसा ही करेंगे, जिनको मानव धर्म निभाना है. और हमें बांटने वाले तो तैयार बैठे हैं, क्योंकि उनको अपना असुरीय धर्म निभाना है.’ RSS प्रमुख ने कहा, ‘उनका काम है कि कितने भी ऐसे प्रयास हों वह आपस में ना बंटे.’

चुनाव से पहले सिद्धारमैया सरकार का मास्टर स्ट्रोक
कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले राज्य मंत्रिमंडल ने 19 मार्च को हिंदू धर्म के लिंगायत पंथ को एक अलग धर्म के रूप में मान्यता देने पर सहमति जताई. राज्य के कानून मंत्री टीबी जयचंद्र ने यह जानकारी दी. जयचंद्र ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद पत्रकारों से कहा, “कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग की अनुशंसा पर, राज्य मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का फैसला किया है.” शिव की पूजा करने वाले लिंगायत और वीरशैव लिंगायत दक्षिण भारत में सबसे बड़ा समुदाय हैं, जिनकी आबादी यहां कुल 17 प्रतिशत है. अप्रैल-मई में होने वाले चुनाव में इनके वोट नतीजों में फर्क पैदा कर सकते हैं. मंत्री ने कहा, “मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अंतर्गत आयोग की सिफारिशों को मान्यता देने और उसे अधिसूचित करने के लिए केंद्र सरकार के पास भेजने का फैसला किया है.”

जयचंद्र ने कहा, “आयोग ने लिंगायत को अल्पसंख्यक का दर्जा इस दृष्टिकोण से दिया है कि राज्य में अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकार को हानि पहुंचे बिना ही लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को समुचित पहचान दी जाए.” आयोग के अंतर्गत कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास की अध्यक्षता वाली एक अन्य समिति ने भी लिंगायत को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने की अनुशंसा की है.

सिद्धारमैया ने बीजेपी के सामने खड़ी की मुसीबत
कर्नाटक में बीजेपी ने लिंगायत समाज से आने वाले बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया है. बीजेपी के इस दांव को कुंद करने के लिए सिद्धारमैया ने लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता दे दी है. कांग्रेस के इस राजनीतिक दांव से पार पाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अध्यक्ष अमित शाह ने शिद्धगंगा मठ में 110 वर्षीय लिंगायत संत, शिवकुमार स्वामी से मुलाकात की और अप्रैल-मई में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में पार्टी की सफलता के लिए उनका आशीर्वाद लिया. शाह ने यहां पत्रकारों से कहा, “जब मैंने श्रद्धेय स्वामीजी से मुलाकात की, तो मुझे ऐसा लगा कि मैं भगवान के दर्शन कर रहा हूं. मैंने राज्य विधानसभा चुनाव में पार्टी की सफलता के लिए उनसे आशीर्वाद मांगा.” शाह ने इस बात पर भी खुशी जताई कि प्रसिद्ध लिंगायत मठ पूरे राज्य में 125 शैक्षणिक संस्थान चला रहा है और लोगों की भलाई से जुड़े कई काम कर रहा है. उन्होंने कहा, “स्वामीजी ने शिक्षा के जरिए समाज के सभी वर्गो के लोगों को एक साथ लाने में सफलता पाई है.” शाह ने शिवकुमार स्वामी से यह मुलाकात ऐसे समय में की है, जब एक हफ्ते पहले 19 मार्च को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया नीत कांग्रेस सरकार ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को एक अलग धर्म का दर्जा देने के निर्णय लिया है.

राज्य सरकार ने 23 मार्च को 12वीं शताब्दी के समाज सुधारक बासवा के अनुयायियों को कुछ समुदायों के विरोध के बावजूद धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने को लेकर अधिसूचना जारी कर दी है. राज्य में लिंगायत समुदाय की आबादी 17 प्रतिशत है और ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने यह कदम आगामी विधानसभा चुनाव में इस समुदाय को लुभाने के लिए उठाया है.कर्नाटक में बीजेपी का मुख्यमंत्री चेहरा बी.एस. येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं और उन्होंने कांग्रेस की इस पहल को हिंदू मतों को बांटने का प्रयास बताया है. राजनीतिक पर्यवेक्षक शाह के मठ दौरे को लिंगायत समुदाय को अपने पक्ष में करने के प्रयास के तौर पर देख रहे हैं.

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