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सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द किया, कहा- यह समानता के अधिकार का उल्लंघन

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र में मराठा कोटा (Maratha Reservation) रद्द कर दिया और कहा कि मराठा कोटा 50% से अधिक नहीं हो सकता है. अदालत ने कहा कि यह समानता का उल्लंघन करता है. बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं  पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हमें इंदिरा साहनी के फैसले पर दोबारा विचार करने का कारण नहीं मिला.’ जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और एस जस्टिस रवींद्र भट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले पर फैसला सुनाया.

संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं है और रोजगार में आरक्षण 12 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए और नामांकन में यह 13 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. हाईकोर्ट ने राज्य में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा था?
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि महाराष्ट्र के पास मराठाओं को आरक्षण देने की विधायी क्षमता है और इसका निर्णय संवैधानिक है, क्योंकि 102वां संशोधन किसी राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की सूची घोषित करने की शक्ति से वंचित नहीं करता.
वर्ष 2018 में लाए गए 102वें संविधान संशोधन कानून में अनुच्छेद 338 बी, जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ढांचे, दायित्वों और शक्तियों से संबंधित है, तथा अनुच्छेद 342ए, जो किसी खास जाति को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा घोषित करने की राष्ट्रपति की शक्ति और सूची में बदलाव की संसद की शक्ति से संबंधित है, लाए गए थे.

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