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नागरिकता संशोधन और तीन तलाक बिल आज राज्यसभा में नहीं हुआ पास तो हो जाएगा निष्प्रभावी

नई दिल्ली: मोदी सरकार के कार्यकाल के आखिरी संसदीय सत्र का आज आखिरी दिन है. यह सत्र काफी हंगामेदार रहा जिसकी वजह से सरकार कई महत्वपूर्ण विधेयक पास करवाने में नाकामयाब रही. जिसमें नागरिकता (संशोधन) विधेयक और तीन तलाक जैसा दो अहम बिल शामिल है. दोनों ही बिल को लोकसभा की मंजूरी मिल चुकी है लेकिन आज अगर इसे राज्यसभा में पारित नहीं करवाया गया तो बिल अपना महत्व खो देगा. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद आज एक बार फिर तीन तलाक बिल राज्यसभा में पेश करेंगे. हालांकि विपक्षी दलों के रुख को देखते हुए बिल को मंजूरी मिलना आसान नहीं होगा. कांग्रेस, टीएमसी समेत अन्य विपक्षी पार्टियां बिल को प्रवर समिति के पास भेजने की मांग कर रही है. आपको बता दें कि बिल में एक बार में तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) को गैरकानूनी कहा गया है और ऐसा करने पर पति को तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया है.

तीन तलाक बिल को पिछले साल 27 दिसंबर को लोकसभा से मंजूरी मिली थी. नये विधेयक का उद्देश्य सितंबर में लागू अध्यादेश की जगह लेना था. लेकिन राज्यसभा में बिल पास नहीं हो सका. एक अध्यादेश की समयावधि छह महीने की होती है. लेकिन कोई सत्र शुरू होने पर इसे विधेयक के तौर पर संसद से 42 दिन (छह सप्ताह) के भीतर पारित कराना होता है, वरना यह अध्यादेश निष्प्रभावी हो जाता है.

सरकार आज नागरिकता संशोधन विधेयक भी राज्यसभा में पास कराने की कोशिश करेगी. हालांकि विपक्षी दलों के तेवर को देखते हुए पास होने की उम्मीद कम है. विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर में भारी प्रदर्शन हो रहे हैं. सरकार का साथ दे रही जेडीयू भी बिल के खिलाफ है. वह राज्यसभा में बिल के खिलाफ वोट करेगी. वहीं इस बिल का विरोध करते हुए असम गण परिषद समेत कई दलों ने एनडीए का साथ छोड़ दिया है.

नागरिकता संशोधन विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल की बजाय छह साल भारत में गुजारने पर भारतीय नागरिकता मिल जाएगी.

नियम के तहत नागरिकता संशोधन बिल और तीन तलाक बिल को अगर राज्यसभा में आज मंजूरी नहीं मिलती है तो दोनों ही बिल को नई यानि 17वीं लोकसभा में ले जाना होगा. लोकसभा से मंजूरी मिलने के बाद उसे दोबारा राज्यसभा में लाया जाएगा.

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