भीमा कोरेगांव केस: बॉम्बे HC ने महाराष्ट्र पुलिस से पूछा- जब मामला कोर्ट में है तो प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों?

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र पुलिस द्वारा माओवादियों से कथित तौर पर संबंध रखने वाले कुछ प्रमुख नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज मामले पर संवाददाता सम्मेलन करने को लेकर सोमवार को सवाल उठाए। राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) परमवीर सिंह ने पुणे पुलिस के साथ मिलकर शुक्रवार को इस मामले पर मीडिया से बातचीत की थी।

संवाददाता सम्मेलन के दौरान सिंह ने कार्यकर्ताओं के बीच कथित तौर पर आदान-प्रदान किए गए पत्रों को पढ़कर भी सुनाया। उन्होंने दावा किया कि पुलिस के पास जून में और पिछले हफ्ते गिरफ्तार किए गए वामपंथी कार्यकर्ताओं के माओवादियों से संबंध बताने के लिए “ठोस सबूत” हैं।

न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और मृदुला भाटकर की पीठ ने पूछा कि पुलिस ऐसे दस्तावेजों को इस तरह पढ़कर कैसे सुना सकती है जिनका इस्तेमाल मामले में साक्ष्य के तौर पर किया जा सकता है। न्यायमूर्ति भाटकर ने कहा, “पुलिस ऐसा कैसे कर सकती है? मामला विचाराधीन है। उच्चतम न्यायालय मामले पर विचार कर रहा है। ऐसे में मामले से संबंधित सूचनाओं का खुलासा करना गलत है।” लोक अभियोजक दीपक ठाकरे ने कहा कि वह संबंधित पुलिस अधिकारियों से बात करेंगे और उनसे जवाब मांगेंगे।

पीठ भीमा कोरेगांव हिंसा का शिकार होने का दावा करने वाले शख्स सतीश गायकवाड़ द्वारा शुक्रवार को दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उन्होंने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) से करवाने की मांग की है। गायकवाड़ ने उच्च न्यायालय से पुणे पुलिस से मामले की आगे की जांच नहीं करवाने और जांच पर रोक लगाने की अपील की है।

पीठ ने मामले में अगली सुनवाई सात सितंबर को तय की है। पुलिस ने पिछले साल पुणे में 31 दिसंबर को आयोजित एलगार परिषद कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को जून में गिरफ्तार किया था।

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