पीएम मोदी ने डॉ लोहिया को किया याद, कहा- ‘जो लोग उनके सिद्धांतों से छल कर रहे हैं, वही कल देशवासियों को छलेंगे’

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. राम मनोहर लोहिया को उनकी जयंती पर नमन करते हुए ब्लॉग लिखा। साथ ही उन्होंने विपक्षियों पर निशाना भी साधा। पीएम मोदी ने अपने ब्लॉग की शुरुआत में वीर भगत सिंहसुखदेव और राजगुरु को याद करते हुए डॉ राम मनोहर लोहिया को नमन किया और फिर अपने विचार रखे। अंत तक जाते-जाते उन्होंने विपक्षियों को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि ‘जो लोग आज डॉ लोहिया के सिद्धांतों से छल कर रहे हैं, वही कल देशवासियों के साथ भी छल करेंगे। जो लोग डॉ लोहिया के दिखाए रास्ते पर चलने का दावा करते हैं, वही क्यों उन्हें अपमानित करने में लगे हैं?’

पीएम मोदी का पूरा ब्लॉग

आज का दिन देश के महान क्रांतिकारियों के सम्मान का दिन है। मां भारती के अमर सपूतों वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हैं।  इसके साथ ही अद्वितीय विचारक, क्रांतिकारी तथा अप्रतिम देशभक्त डॉ. राम मनोहर लोहिया को उनकी जयंती पर सादर नमन।

गोवा मुक्ति आंदोलन के इतिहास में डॉ. लोहिया का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। जहां कहीं भी गरीबों, शोषितों, वंचितों को मदद की जरूरत पड़ती, वहां डॉ. लोहिया मौजूद होते थे। डॉ. लोहिया के विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उन्होंने कृषि को आधुनिक बनाने तथा अन्नदाताओं के सशक्तीकरण को लेकर काफी कुछ लिखा। उनके इन्हीं विचारों के अनुरूप एनडीए सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, कृषि सिंचाई योजना, e-Nam, सॉयल हेल्थ कार्ड और अन्य योजनाओं के माध्यम से किसानों के हित में काम कर रही है।

डॉ. लोहिया समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था और महिलाओं एवं पुरुषों के बीच की असमानता को देखकर बेहद दुखी होते थे।‘सबका साथ, सबका विकास’ का हमारा मंत्र तथा पिछले पांच सालों का हमारा ट्रैक रिकॉर्ड यह दिखाता है कि हमने डॉ. लोहिया के विजन को साकार करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। अगर आज वे होते तो एनडीए सरकार के कार्यों को देखकर निश्चित रूप से उन्हें गर्व की अनुभूति होती।

जब कभी भी डॉ. लोहिया संसद के भीतर या बाहर बोलते थे, तो कांग्रेस में इसका भय साफ नजर आता था। देश के लिए कांग्रेस कितनी घातक हो चुकी है, इसे डॉ. लोहिया भलीभांति समझते थे। 1962 में उन्होंने कहा था, “कांग्रेस शासन में कृषि हो या उद्योग या फिर सेना, किसी भी क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ है।”

उनके ये शब्द कांग्रेस की बाद की सरकारों पर भी अक्षरश: लागू होते रहे। बाद के कांग्रेस शासनकालों में भी किसानों को परेशान किया गया, उद्योगों को हतोत्साहित किया गया (सिर्फ कांग्रेस नेताओं के दोस्तों और रिश्तेदारों के उद्योगों को छोड़कर) और राष्ट्रीय सुरक्षा की अनदेखी की गई।

कांग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उनके प्रयासों की वजह से ही 1967 के आम चुनावों में सर्वसाधन संपन्न और ताकतवर कांग्रेस को करारा झटका लगा था। उस समय अटल जी ने कहा था – डॉ. लोहिया की कोशिशों का ही परिणाम है कि हावड़ा-अमृतसर मेल से पूरी यात्रा बिना किसी कांग्रेस शासित राज्य से गुजरे की जा सकती है !

दुर्भाग्य की बात है कि राजनीति में आज ऐसे घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखकर डॉ. लोहिया भी विचलित, व्यथित हो जाते। वे दल जो डॉ. लोहिया को अपना आदर्श बताते हुए नहीं थकते, उन्होंने पूरी तरह से उनके सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है। यहां तक कि ये दल डॉ. लोहिया को अपमानित करने का कोई भी कोई मौका नहीं छोड़ते।

ओडिशा के वरिष्ठ समाजवादी नेता श्री सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी ने कहा था,“डॉ. लोहिया अंग्रेजों के शासनकाल में जितनी बार जेल गए, उससे कहीं अधिक बार उन्हें कांग्रेस की सरकारों ने जेल भेजा।” आज उसी कांग्रेस के साथ तथाकथित लोहियावादी पार्टियां अवसरवादी महामिलावटी गठबंधन बनाने को बेचैन हैं। यह विडंबना हास्यास्पद भी है और निंदनीय भी है।

डॉ. लोहिया वंशवादी राजनीति को हमेशा लोकतंत्र के लिए घातक मानते थे। आज वे यह देखकर जरूर हैरान-परेशान होते कि उनके ‘अनुयायी’ के लिए अपने परिवारों के हित देशहित से ऊपर हैं।

डॉ. लोहिया का मानना था कि जो व्यक्ति ‘समता’, ‘समानता’ और ‘समत्व भाव’ से कार्य करता है, वह योगी है। दुख की बात है कि स्वयं को लोहियावादी कहने वाली पार्टियों ने इस सिद्धांत को भुला दिया। वे‘सत्ता’, ‘स्वार्थ’ और ‘शोषण’ में विश्वास करती हैं। इन पार्टियों को जैसे तैसे सत्ता हथियाने, जनता की धन-संपत्ति को लूटने और शोषण में महारत हासिल है। गरीब, दलित, पिछड़े और वंचित समुदाय के लोगों के साथ ही महिलाएं इनके शासन में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करतीं, क्योंकि ये पार्टियां अपराधी और असामाजिक तत्त्वों को खुली छूट देने का काम करती हैं।

डॉ. लोहिया जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी के पक्षधर रहे। लेकिन, वोट बैंक की पॉलिटिक्स में आकंठ डूबी पार्टियां का आचरण इससे अलग रहा। यही वजह है कि तथाकथित लोहियावादी पार्टियों ने तीन तलाक की अमानवीय प्रथा को खत्म करने के एनडीए सरकार के प्रयास का विरोध किया।

इन पार्टियों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इनके लिए डॉ. लोहिया के विचार और आदर्श बडे़ हैं या फिर वोट बैंक की राजनीति? आज 130 करोड़ भारतीयों के सामने यह सवाल मुंह बाए खड़ा है कि – जिन लोगों ने डॉ. लोहिया तक से विश्वासघात किया, उनसे हम देश सेवा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? जाहिर है, जिन लोगों ने डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल किया है, वे लोग हमेशा की तरह देशवासियों से भी छल करेंगे।

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