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CBSE पेपर लीक: तमाशा मेरे आगे…सबकुछ करेंगे दोबारा एग्जाम नहीं देंगे

”CBSE हाय..हाय…वी वांट जस्टिस”… आज सुबह जब मैंने टीवी खोला तो न्यूज चैनल में कुछ बच्चे ऐसे नारे लगा रहे थे। ये बारहवीं के वे स्टूडेंट हैं जिनको एक बार फिर से इकोनॉमिक्स को घोंटना होगा। एक बार पेपर निकल जाए तो दोबारा उन नोट्स की तरफ झांकने का मन तक नहीं करता। किताब देखकर उबकाई आने लगती है लेकिन बेचारे बारहवीं के इन स्टूडेंट्स को कुढ़ कुढ़कर फिर से पेपर तैयार करना होगा। लेकिन कुछ बच्चे क्रांतिकारी हैं (और होते ही हैं) अपने साथियों को अनचाही पढ़ाई की गुलामी से बचाने के लिए लड़ रहे हैं। सड़कों पर पसीना बहा रहे हैं। बच्चों को दोबारा परीक्षा के झंझट से मुक्त दिलाने के लिए मुठ्ठीभर बच्चे विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

स्टूडेंट्स के प्रदर्शन ने मुझे दो दशक पुरानी यादों की तरफ धकेल दिया। ठीक ऐसे ही हमारे भी पेपर लीक हुए थे, हालांकि वो क्लास ग्यारहवीं की थी। वह एग्जाम तमाशा बन गए थे। एक एक कर सारे पेपर लीक हो गए थे। वो जमाना न ही कबूतर से संदेश भेजने का था और न ही व्हाट्स एप का तो इसलिए लीक पेपर हासिल करने में वह स्टूडेंट सबसे सफल रहे जो पर्सन टू पर्सन कॉन्टेक्ट करने में सबसे आगे रहते थे। अच्छे संबंध कैसे किसी को आगे बढ़ा सकते हैं, इसका अहसास मुझे बचपन के उस पेपर लीक कांड के दरम्यान हो चुका था।

तो बहरहाल एक के बाद एक पेपर लीक हो रहे थे, एग्जाम सेंटर में पेपर हू ब हू वैसा ही आ रहा था जो पेपरलीक शिरोमणि लीक करवा रहा था। वह जिंदगी की ऐसी पहली और आखिरी परीक्षा थी जिसमें एग्जाम सेंटर के अंदर तनाव जीरे से भी नीचे के प्रतिशतों में रहता था। पूरा एग्जाम सेंटर खुशनुमा अहसास सा देता था। प्रश्नपत्र बंटने के बाद छात्र एक दूसरे को देखकर कनअखिंयों से वैसे ही मुसकुराते थे जैसे प्रेमी और प्रेमिका। प्रेमी-प्रेमिका के चेहरे के तासुर भी शायद ढीले पड़ सकते हैं लेकिन उस एग्जाम के दौरान लीक का प्रसाद हासिल करने वाले बच्चों के चेहरे नूरानी बने रहे थे।

पेपर लीक कांड का पता शिक्षकों को भी था लेकिन जिस स्कूल की फीस 1 रूपया 75 पैसा हो (उसमें भी स्कूल को छोड़ते समय आधा पैसा कॉसन मनी के तौर पर मिल जाता था), उस स्कूल के शिक्षक भला ‘शिक्षा के घटते स्तर’ जैसे घिसे पिटे निबंधों के सार को समझने में क्या लगाते। इसलिए जो चल रहा था वो चलने दिया गया लेकिन अंतिम एग्जाम की सुबह कयामत वाली सुबह थी। छात्र लीक पेपर का घोंटा मारकर निश्चिंत थे। बुद्धु से बुद्धु छात्र भी जिला न सही लेकिन स्कूल टॉप करने के सपने देखने लगा था परंतु अंतिम एग्जाम का क्वेचन पेपर वैसा नहीं था जो प्रसाद में मिला था। उस दिन एग्जाम हॉल में सन्नाटा था। छात्रों के चेहरे सूने सूने से हो गए थे और ड्यूटी पर लग टीचर मुस्किया रहे थे, मानो कह रहे थे, बच्चे अब असली झेलो।

जवानी की अंगड़ाई ले रहे मासूम छात्रों पर वज्रपात की अब श्रृंखला शुरू होने वाले थी। अगले दिन  ही जिले के डीएम ने ये ऐलान कर दिया कि 11वीं के सभी पेपर फिर से होंगे। मजे की बात ये थी कि ये पेपर दूसरे दिन से ही शुरू हो जाने वाले थे। अब लइके (लड़के) हैं, लइकों (लड़कों) से गलती हो जाती है, पर इसका मतलब ये तो नहीं है कि पूरे के पूरे पेपर नए सिरे से करवाओगे। बच्चों की जान लोगे क्या?

कोई दलीले चलने वाली थी नहीं दूसरे दिन की सुबह भी हुई। फिर से एग्जाम देने की घंटी बजी लेकिन कोई भी छात्र कक्षाओं में नहीं गया बल्कि छात्रों की टोली स्कूल से सटी सड़क पर जमा हो गई। छात्रों ने बगावत का झंडा उठा लिया था सबकुछ करने को तैयार थे लेकिन दोबारा परीक्षा देने को तैयार नहीं थे। छात्रों की इतनी भीड़ थी कि लगा कि क्रांति ऐसे ही आती होगी। छात्र एक दूसरे के चेहरे अच्छे से टटोल रहे थे क्योंकि उस दिन कोई चे ग्वारा नजर आ रहा था तो कोई भगत सिंह। सरफरोशी की तमन्ना उस दिन हमारे दिलों में थी। लगा कि बस अब स्कूल को बदलना तो चुटकियों का काम है, असली मकसद तो ऐसे छात्र आंदोलन खड़े करके देश और दुनिया बदलना है। दोबारा पेपर न देने अर्थात फिर से पढ़ने के झंझट में न फंसने के आंदोलन की कमान क्लास के सबसे दबंग, जुगाड़ी और कम अक्ल छात्रों के हाथों में थी। ये छात्र अपने साथ पड़ोस के कुछ छुटभइये नेताओं को भी बुला लाए थे। पूरी सड़क में प्रिसिपल के खिलाफ नारे लग रहे थे। इस बेहद निजी और स्वार्थ सिद्धी वाले आंदोलन में प्रिसिंपल की मां-बहनों को भी बेबात में घसीटा जा रहा था। कोलाहल था। हंगामा था। नारेबाजी थी। करो या मरो टाइप सीन हो गया था।

लेकिन तभी सड़क पर स्कूल के सबसे कड़क टीचर नमूदार होते हैं। ये टीचर उसूलों के पक्के थे। पूरा स्कूल इन कड़क टीचर से डरता भी था। सडक पर पहुंचते ही कड़क मास्साब दहाड़े। ये क्या तमाशा बना रखा है चलो अपनी क्लास में और एग्जाम दो। आधे से ज्यादा क्रांति के टायर की  हवा इन लफ्जों से ही निकल चुकी थी। स्टूडेंट अब ये गुणा-भाग लगाने में जुट गए कि अगर खुदा न खास्ता मास्साब की नजर उनपर पड़ गई तो या तो प्रैक्टिकल में फेल कर देंगे नहीं तो थ्योरी में कुछ न कुछ कमी बताकर 33 नंबरों की सीमा का भी गला घोंट देंगे। और सबसे बड़ी चिंता तो इस बात की थी कि मास्टर साहब पिताजी से कहीं ये न कह दें कि ” तिवारी जी, आपका लड़का बिगड़ गया है इन दिनों, जरा नजर रखो।संगत खराब हो गई है उसकी।” बिना हथियारों की क्रांति करने वालों की आधी सेना पस्त पड़ चुकी थी लेकिन आंदोलन के सरगना अब भी जुटे हुए थे। वे किसी भी कीमत पर लड़कों को रोके रहना चाहते थे क्योंकि लड़के एग्जाम सेंटर में चले गए तो उन्हें भी एग्जाम देना पड़ेगा और फिर उनकी नियति यानी फेल होने को झेलना होगा। कहते हैं ना दिन में देखे सपने पूरे नहीं होते। कुछ घंटों में अखुवाया ये सपना भी बस चूर चूर होने वाला था।

कड़क मास्टरसाहब जब घंटे भर तक जूझते रहे तो उन्होंने अपना रौद्ररूप दिखाना शुरू कर दिया। उनकी कड़क आवाज से क्रांति की सीख नालियों में बहने लगी। आधा दर्जन सबसे पढ़ाकू लड़कों ने सबसे पहले हथियार डाले, बस फिर क्या था पूरी सेना ने हार मना ली। एक भेड़ के पीछे पूरी रेहड़ क्लास रूम के अंदर चली गई और छककर पेपर दिया। जो स्टूडेंट चालाक थे वे पूरी तैयारी करके आए थे लेकिन जो क्रंति के नायक थे उनको क्रांति के मुकम्मल होने का यकीं था, इसलिए कुछ पढ़ भी नहीं पाए और फेल भी हो गये। हालांकि पेपर लीक की उस क्रांति के असली नायक अब नेता बन चुके हैं। सुना है उनकी दसों अगुंलिया घी में और सिर कड़ाई में है। वो कड़क टीचर कहीं बीहड़ में रिटायरमेंट की जिंदगी जी रहा है और हां वो स्टूडेंट जिनके सिर क्रांति को फेल करने की सलीब लटकी वो स्टूडेंट 10 से 5 की नौकरियों में जिंदगी घिस रहे हैं। किसी की आंखें खराब हो चुकी हैं तो किसी को डायबिटीज और हार्ट की बीमारी हो चुकी है।

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