यादें: जब संसद में गरजे अटल, कहा- ऐसी सत्ता को चिमटे से छूना भी पसंद नहीं करूंगा

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का लंबी बीमारी के बाद आज 94 साल की उम्र में निधन हो गया है. उनके निधन की खबर मिलते ही पूरा देश शोक में डूब गया है. पिछले 66 दिनों से उनका इलाज दिल्ली के एम्स में चल रहा था. यहां उन्हें यूरीन में इनफैक्शन की शिकायत के बाद 11 जून को भर्ती कराया गया था. साल 2009 में अटल जी को आघात (स्ट्रोक) लगा था और इसके बाद उन्हें बोलने में समस्या होने लगी थी. करीब तीन सालों से उन्हें किसी सार्वजनिक सभा में नहीं देखा गया.

 

विश्वास मत के दौरान का भाषण ना कोई भूला ना कोई भूल पाएगा

 

मई 1996 में अपनी अल्पमत सरकार के विश्वास मत के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण और वो अंदाज जिसने भी देखा सुना वो कभी भूल नही पाया. 1984 में महज दो सीटों तक सीमित रह जाने वाली बीजेपी 1996 में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी. सरकार का चेहरा अटल बिहारी वाजपेयी बने. प्रधानमंत्री पद का शपथ लेने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी लोकसभा में जरूरी बहुमत हासिल करने की. दूसरी पार्टियों को साथ लाने की तमाम कोशिशें नाकामयाब रहे. और ऐसे में जब सरकार के मुखिया को मालूम था कि उनकी सरकार विश्वास मत हासिल नहीं कर पाएगी तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी विश्वास मत का प्रस्ताव पेश करने जा रहे थे.

 

जब पीएम अटल भूल गए कि वो प्रधानमंत्री हैं

 

ये पहली बार था जब लोकसभा का लाईव टेलीकास्ट हो रहा था. पूरा सदन भरा हुआ था. लोकसभा स्पीकर ने प्रधानमंत्री वाजपेयी को अपना विश्वास मत पेश करने के लिए कहा. अपना विश्वास मत पेश करते वाजपेयी का संबोधन था प्रधानमंत्री जी … उनके ये कहते ही पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा. क्या पक्ष क्या विपक्ष ..सांसदों की हंसी रोके नही रूक रही थी. बोलने के बाद खुद वाजपेयी को भी लगा कि वो गलत बोल गए..प्रधानमंत्री तो वो खुद हैं. वाजपेयी ने खुद इस भाषण में इस भूल की वजह की ओर संकेत भी कर दिया.. कहा कि जब मैं सदन में पहली बार आय़ा तब नेहरू जी प्रधानमत्री थे..कई वर्ष उन्हें काम करते देखा..मैं उधर बैठता था ( विपक्ष की तरफ इशारा)..अभी भी उधर की याद भूली नही है.

 

पार्टी तोड़ मिली सत्ता मंजूर नहीं

 

दरअसल विश्वास मत की कार्यवाही पूरा देश देख रहा था. ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषण के जरिए देश को ये संदेश भी दिया कि उन्हें सत्ता का कोई लालच नही है. वाजेपयी ने अपने भाषण में कहा कि ‘मेरे उपर आरोप लगाया गया है कि मुझे सत्ता का लोभ हो गया है.  पिछले दस दिनों में जो कुछ किया वो सत्ता के लोभ में किया है. मैं पिछले 40 सालों से सदन में हूं. सबने मेरा आचार व्यवहार देखा है..कभी सत्ता के लोभ में गलत काम नही किया.’ वाजपेयी ने नेता के तौर पर उनकी तारीफ करने औऱ उनकी पार्टी बीजेपी को भला-बुरा कहने पर विपक्ष पर जोरदार चुटकी ली औऱ कहा ‘बार बार सुना वाजपेयी तो अच्छा है लेकिन पार्टी अच्छी नही है. अच्छा तो अच्छे वाजपेयी का आप क्या करने का इरादा रखते हैं.’ वाजपेयी के ये पूछते ही सदन में हंसी की लहर दौड़ गयी. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ चुटकी पर ही नही रूके उन्होंने विपक्ष को दो टूक कहा का ‘अगर पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गंठबंधन कर के अगर सत्ता हाथ आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नही करूंगा.. भगवान राम ने कहा था कि मैं मृत्यु से नही डरता मैं बदनामी से डरता हूं लोकोपवाद से डरता हूं.’

 

इस्तीफे का एलान कर चौंकाया

 

13 दिन की सरकार बहुमत नही जुटा पायी थी. विपक्ष की गोलबंदी के आगे वाजपेयी सरकार गिरनी तय थी. अपने लंबे भाषण में विपक्ष की गठजोड़ पर प्रहार करते, राजनीति में नीति औऱ नैतिकता का पाठ पढ़ाते अटल बिहारी वाजपेयी को पूरा सदन मंत्रमुग्ध हो सुन रहा था. सरकार बनाने के लिए तैयार विपक्ष को गठबंधन की राजनीति की सीमाओं पर चेतावनी देते वाजपेयी ने अपने भाषण की आखिरी लाईन से पूरे देश को चौका दिया जो एक इतिहास बन गया. उनकी आखिरी लाईन थी – ‘हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.. हम अपने देश के सेवा कार्य में जुटे रहेंगे. हम संख्या बल के आगे सर झुकाते हैं औऱ आपको विश्वास दिलाते हैं  कि जो कार्य हमने अपने हाथ में लिया है, वो जबतक राष्ट्र उद्देशय पूरा नही कर लेगें तब तक विश्राम से नही बैठेंगे, आराम से नही बैठेंगे… अध्यक्ष महोदय मैं अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को देने जा रहा हूं.’

 

अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था ‘सत्ता का खेल तो चलेगा..सरकारें आएंगी जाएंगी. पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी. मगर ये देश रहना चाहिए. इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए .’ वाजपेयी के भाषण के बाद उनकी सरकार गिर गयी लेकिन देश की जनता की नज़रों में वो नायक बन गए. ये भाषण एक बानगी थी, एक झलक थी प्रखर वक्ता अटल की, उनकी राजनीति की. विश्वास मत के इस भाषण से लोगों के मन में अटल बिहारी वाजपेयी की ऐसी अमिट छवि बनी जो कभी धूमिल नही हुई, जिसे सिर्फ उनके दौर के लोग ही नही बल्कि पीढ़ियां याद रखेंगी.

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