पाकिस्तान की बर्बादी शुरू, भारत नहीं जाने देगा अपने हिस्से का पानी

नई दिल्ली। जम्मू और कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने बडा फैसला लिया है। दरअसल पाकिस्तान को उसके कुकर्मों का करारा जवाब देने के लिए भारत ने रावी, सतलुज और व्यास नदियों से बहकर पाकिस्तान जानेवाले पानी को रोकने का मास्टरप्लान बनाया है। हालांकि पाकिस्तान ने कहा कि भारत के इस एक्शन का उसपर कोई फर्क नहीं पड़ता।
अब भारत सिंधु जल संधि के तहत यह कदम उठाने जा रहा है।

सिंधु प्रणाली में मुख्यत: सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, व्यास और सतलुज नदियां शामिल हैं। इन नदियों के बहाव वाले क्षेत्र (बेसिन) को मुख्यत: भारत और पाकिस्तान साझा करते हैं। इसका एक बहुत छोटा हिस्सा चीन और अफगानिस्तान को भी मिला हुआ है।
भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई सिंधु जल संधि के तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया। सतलुज, व्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया। रावी, सतलुज और व्यास जैसी पूर्वी नदियों का औसत 33 मिलियन (एमएएफ) पानी पूरी तरह इस्तेमाल के लिए भारत को दे दिया गया। इसके साथ ही पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चेनाब का करीब 135 एमएएफ पाकिस्तान को दिया गया।

संधि के मुताबिक, कुछ अपवादों को छोड़ दें तो भारत पूर्वी नदियों का पानी बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और व्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार भारत को दिया गया है। जल संधि के तहत जिन पूर्वी नदियों के पानी के इस्तेमाल का अधिकार भारत को मिला था उसका उपयोग करते हुए भारत ने सतलुज पर भाखड़ा बांध, व्यास नदी पर पोंग और पंदु बांध और रावी नदी पर रंजीत सागर बांध का निर्माण किया।

इसके अलावा, भारत ने इन नदियों के पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए व्यास-सतलुज लिंक, इंदिरा गांधी नहर और माधोपुर-व्यास लिंक जैसी अन्य परियोजनाएं भी बनाई। इससे भारत को पूर्वी नदियों का करीब 95 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल करने में मदद मिली। हालांकि, इसके बावजूद रावी नदी का करीब 2 एमएएफ पानी हर साल बिना इस्तेमाल के पाकिस्तान की ओर चला जाता है।

मंत्रालय ने बताया कि इस पानी को रोकने के लिए भारत सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं जिनमें शाहपुरखंडी परियोजना का निर्माण कार्य फिर से शुरू करना, उझ बहुउद्देश्यीय परियोजना, उझ के नीचे दूसरी रावी ब्यास लिंक परियोजना शामिल हैं। शाहपुरखंडी परियोजना के बारे में बयान में कहा गया कि इस परियोजना से थेन बांध के पावर हाउस से निकलने वाले पानी का इस्तेमाल जम्मू कश्मीर और पंजाब में 37000 हेक्टर भूमि की सिंचाई तथा 206 मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए किया जा सकेगा।

यह परियोजना सितंबर 2016 में ही पूरी हो जानी थी लेकिन जम्मू कश्मीर और पंजाब के बीच विवाद हो जाने के कारण 30 अगस्त, 2014 से ही इसका काम रूका पड़ा है। दोनों राज्यों के बीच आखिरकार इसे लेकर 8 सितंबर, 2018 को समझौता हो गया। परियोजना के निर्माण पर कुल 2715.7 करोड़ रुपए की लागत आएगी। भारत सरकार ने 19 दिसंबर, 2018 को जारी आदेश के तहत परियोजना के लिए 485.38 करोड़ रुपए की केंद्रीय मदद मंजूर की है। यह राशि परियोजना के सिंचाई वाले हिस्से के लिए होगी। भारत सरकार की देखरेख में पंजाब सरकार ने परियोजना का काम फिर से शुरू कर दिया है।

उझ बहुद्देशीय परियोजना के बारे में सरकार ने बताया कि 5850 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना से उझ नदी पर 781 मिलियन सीयू एम जल का भंडारण किया जा सकेगा जिसका इस्तेमाल सिंचाई और बिजली बनाने में होगा। इस पानी से जम्मू कश्मीर के कठुआ, हिरानगर और सांभा जिलें में 31 हजार 380 हेक्टर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी और उन्हें पीने के पानी की आपूर्ति हो सकेगी। परियोजना के डीपीआर को तकनीकी मंजूरी जुलाई 2017 में ही दी जा जुकी है। यह एक राष्ट्रीय परियोजना है जिसे केंद्र की ओर से 4892.47 करोड़ रुपये की मदद दी जा रही है। ये मदद परियोजना के सिंचाई से जुड़े हिस्से के लिए होगी। इसके अलावा परियोजना के लिए विशेष मदद पर भी विचार किया जा रहा है।

रावी व्यास लिंक परियोजना…
बयान के मुताबिक, इस परियोजना का उद्देश्य थेन बांध के निर्माण के बावजूद रावी से पाकिस्तान की ओर जाने वाले अतिरिक्त पानी को रोकना है। इसके लिए रावी नदी पर एक बराज बनाया जाएगा और व्यास बेसिन से जुड़ी एक सुरंग के जरिए नदी के पानी के बहाव को दूसरी ओर मोड़ा जाएगा। बयान में कहा गया कि उपरोक्त तीनों परियोजनाएं भारत को सिंधु जल संधि, 1960 के तहत मिले पानी के हिस्से का पूरा इस्तेमाल करने में मदद करेगी।

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