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मुशर्रफ ने शरीफ के सिर पर फोड़ा कारगिल युद्ध की हार का ठीकरा

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने पद से हटाए गए देश के प्रधानंमत्री नवाज शरीफ को 1999 में पाकिस्तान की सेना के मजबूत स्थिति में होने के बाद भी भारत के दबाव में कारगिल से पीछे हटने के लिए जिम्मेदार ठहराया है. कारगिल लड़ाई के दौरान सेना प्रमुख रहे मुशर्रफ ने यह भी मांग की कि शरीफ पर 2008 के मुंबई हमले के बारे में विवादास्पद बयान देने को लेकर राजद्रोह का मुकदमा चलया जाना चाहिए. पाकिस्तान में कई मामलों का सामना कर रहे 74 साल के रिटायर्ड जनरल पिछले साल से दुबई में रह रहे हैं. उन्हें इलाज के लिए देश से बाहर जाने की अनुमति दी गयी थी. 26/11 के मुंबई हमले पर शरीफ के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया में ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग के प्रमुख मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध के बारे में भी बात की और पाकिस्तान सेना के पीछे हटने के लिए शरीफ को जिम्मेदार ठहराया. इस युद्ध और हालिया घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस लड़ाई में पांच अलग-अलग जगहोें पर मजबूत स्थिति में था और तत्कालीन प्रधानमंत्री को कम से कम दो बार इस स्थिति के बारे में बताया गया. उन्होंने शरीफ के इस दावे को खारिज कर दिया कि कारगिल से पाकिस्तानी सेना के हटने के बारे में उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया था.

मुशर्रफ ने एक वीडियो मैसेज में कहा, ‘‘वो मुझसे पूछते रहे कि क्या हमें वापस आ जाना चाहिए.’’ इस तानाशाह ने ये भी कहा कि तत्कालीन सीनेटर राजा जफारुल हक और तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी शुजात ने भी सेना के वापस लौटने का विरोध किया था. लेकिन अमेरिका से लौटने के बाद शरीफ ने सेना के कारगिल से पीछे हटने का आदेश दिया. शरीफ भारत सरकार के दबाव में थे.

आपको बता दें कि शरीफ ने एक इंटरव्यू में पहली बार सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार किया था कि पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन खुलकर काम कर रहे हैं. इसी में उन्होंने सीमा पार करने और 26/11 के आंतकी हमले में मुंबई में लोगों की ‘हत्या’ के लिये ‘राज्य से इतर तत्वों’ (नॉन स्टेट एक्टर्स) को शह देने की नीति पर सवाल उठाया था.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री (68) ने कहा था कि पाकिस्तान ने खुद को अलग-थलग कर रखा है. शरीफ ने पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार ‘द डॉन’ से कहा कि पाकिस्तान ने खुद को अलग-थलग कर रखा है. उन्होंने  कहा, ‘‘हमने खुद को अलग-थलग कर रखा है. बलिदान देने के बावजूद हमारी बातों को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. अफगानिस्तान की बात स्वीकार की जा रही है लेकिन हमारी नहीं. हमें इस पर गौर करना होगा.’’

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