वायु प्रदूषण और एलर्जी: बच्चों में फेफड़ों के विकास को कैसे रोक रहा है प्रदूषण

राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के शहरों की हवा की गुणवत्ता  पिछले कई दिनों से लगातार बेहद खराब स्थिति में है. अभी तो सर्दियों की सिर्फ शुरुआत है, ऐसे में वायु प्रदूषण  की स्थिति तो कुछ दिनों के अंदर और बदतर हो जाएगी. मार्च 2020 में आईक्यूएयर की तरफ से सामने आयी वर्ल्ड एयर क्वॉलिटी रिपोर्ट की मानें तो दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 6 शहर भारत के ही हैं. वायु प्रदूषण भारत  की एक बहुत बड़ी समस्या है और अनुसंधानकर्ताओं की मानें तो भारत में हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत सिर्फ प्रदूषण के कारण हो जाती है.
गाड़ियों और उद्योगों से निकलने वाली प्रदूषित हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और डीजल के कण जैसे बेहद खतरनाक केमिकल होते हैं जिन्हें सांस के जरिए शरीर के अंदर लिया जाए तो कई तरह की बीमारियां और नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है. सामान्य लोगों की बात करें तो प्रदूषण के इन कणों की वजह से आंख, नाक और वायुमार्ग में तेज जलन और खुजली महसूस होने लगती है. लेकिन जिन लोगों को पहले से एलर्जी की समस्या है उनके लिए तो वायु प्रदूषण और भी खतरनाक साबित हो सकता है.

वायु प्रदूषण और एलर्जी
एलर्जिक रेस्पिरेटरी डिजीज यानी एलर्जी से संबंधित सांस की बीमारी जिसमें एलर्जिक राइनोकंजंक्टिवाइटिस और अस्थमा शामिल है, सबसे आम बीमारियों में से एक है, जिसका मरीज के जीवन स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ता है. एलर्जी से संबंधित सांस की बीमारी के लिए जिम्मेदार मुख्य कारकों में वायु प्रदूषण सबसे अहम है. ऐसा देखने में आया है कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चों और किशोरों में फेफड़ों के विकास में बाधा की समस्या भी हो जाती है.

धुंआ और प्रदूषित हवा के संपर्क में आने की वजह से एलर्जी से जुड़ी संवेदनशीलता, अस्थमा और सांस से जुड़ी कई दूसरी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इसका कारण ये है कि धुएं के संपर्क में आने के बाद हमारे शरीर में आईजीई (एलर्जी एंटीबॉडी) के उत्पादन की क्षमता बढ़ जाती है जो खुद को एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों (पराग कण, धूल मिट्टी और प्रदूषित हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व जैसे- हानिकारक केमिकल्स और गाड़ियों से निकलने वाले डीजल एग्जॉस्ट आदि) से जोड़ लेते हैं. यह आईजीई प्रतिक्रिया, एलर्जिक रिऐक्शन को ट्रिगर करने का काम करती है.

प्रदूषण के कारण होने वाली एलर्जी के लक्षण
जिन लोगों को वायु प्रदूषण के कारण एलर्जी की समस्या महसूस हो रही है उनमें निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं :

    • गले में खुजली होना
    • नाक बहना
    • छींक आना
    • आंख से पानी आना
    • त्वचा में जगह-जगह खुजली होना

प्रदूषित हवा में मौजूद बारीक कणों (पार्टिक्यूलेट मैटर पीएम) का सेहत पर बेहद नकारात्मक असर पड़ता है लेकिन यह अस्थमा और एलर्जी से पीड़ित लोगों के लिए खासतौर पर नुकसानदेह है. अध्ययनों से पता चलता है कि हवा में पीएम कणों के बढ़ने के कारण अस्थमा से पीड़ित लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाने की नौबत भी आ सकती है.

प्रदूषण से संबंधित एलर्जी को मैनेज करने के टिप्स
घर के बाहर मौजूद वायु प्रदूषण को दूर करने या कम करने के लिए आप अपने स्तर पर बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, लिहाजा उससे बचना ही सबसे अहम तरीका है. इसके लिए आप इन उपायों को आजमा सकते हैं:

    • जब भी घर से बाहर निकलें खासकर भीड़भाड़ और ट्रैफिक वाले इलाके में तो मास्क जरूर पहनें. ऐसा करने से प्रदूषित हवा में मौजूद उत्तेजक कण शरीर के अंदर प्रवेश नहीं कर पाएंगे जिससे आपकी एलर्जी और अस्थमा के लक्षणों को बढ़ने से रोकने में मदद मिलेगी.
    • बहुत ज्यादा धुएं वाले कमरे या स्मोक जोन में जाने से परहेज करें.
    • अगर आपको एलर्जी की समस्या और आप फिर भी धूम्रपान करते हैं तो आपको अपनी इस आदत को बदल देना चाहिए.
    • आप जिन इलाके में रहते हैं वहां की रोजाना की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स पर नजर रखें और जब हवा में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक हो तो घर से बाहर निकलने से परहेज करें खासकर वे लोग जिन्हें अस्थमा और एलर्जी की समस्या है. साथ ही घर के बाहर किसी भी तरह की ऐक्टिविटी भी करने से बचें.
    • अगर आप किसी मेन रोड या भीड़भाड़ वाले इलाके में रहते हैं जहां पर प्रदूषण का लेवल बहुत अधिक है तो घर की खिड़कियां बंद ही रखें ताकि प्रदूषण के कण अंदर न आ पाएं. आप चाहें तो एसी का इस्तेमाल कर रूम के अंदर की हवा को साफ कर सकते हैं.
  • जिन लोगों को एलर्जी की समस्या होती है वे गंध को लेकर भी बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं इसलिए खुद भी बहुत तेज खुशबू वाले पर्फ्यूम का इस्तेमाल न करें औऱ घरवालों से भी ऐसा करने के लिए कहें.

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