क्यों और कैसे खराब होते हैं हमारे फेफड़े? जानें इसके कारण और बचाव के तरीके

शरीर का जो अंग हमारी सांसों की हिफाज़त करता हैं, अगर वही बीमार और कमज़ोर हो जाए तो इससे जि़ंदगी भी खतरे में पड़ जाती है। बढ़ते प्रदूषण के कारण आजकल भारत सहित पूरे विश्व में फेफड़े के कैंसर की समस्या तेज़ी से बढ़ रही हैं। यह स्थिति वाकई चिंताजनक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पिछले दो वर्षों में लंग्स कैंसर के कारण पूरी दुनिया में 220 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में कैंसर के सभी नए मामलों में लगभग 6.9 प्रतिशत लंग्स कैंसर के मरीज़ होते हैं। इस बीमारी के बारे में जानने से पहले यह समझना बहुत ज़रूरी है कि फेफड़े हमारे शरीर के लिए किस तरह काम करते हैं।

बड़ी है जि़म्मेदारी

हमारे शरीर को जीवित रखने के लिए प्रत्येक कोशिका को शुद्ध ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है और इसे पूरा करने की जि़म्मेदारी फेफड़ों पर होती है। सांसों से जो हवा शरीर के भीतर जाती है, उसमें मौज़ूद धूल-कण और एलर्जी फैलाने वाले बैक्टीरिया के कुछ अंश नाक के भीतर ही फिल्टर हो जाते हैं। उसके बाद फेफड़ों का काम शुरू हो जाता है। इनमें छलनी की तरह छोटे-छोटे असंख्य वायु तंत्र होते हैं, जिन्हें एसिनस कहा जाता है। ये हवा को फिल्टर करके स्वच्छ ऑक्सीजन युक्त रक्त को दिल तक पहुंचाते हैं और वहीं से पूरे शरीर के लिए रक्त प्रवाह होता है। इसके बाद बची हुई हवा को फेफड़े दोबारा फिल्टर करके उसमें मौज़ूद नुकसानदेह तत्वों को सांस छोडऩे की प्रक्रिया द्वारा शरीर से बाहर निकालने का काम करते हैं। अगर ये अपना काम सही तरीके से न करें तो दूषित वायु में मौज़ूद बैक्टीरिया और वायरस रक्त में प्रवेश करके दिल सहित शरीर के अन्य प्रमुख अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कई बार फेफड़ों का यहीं संक्रमण कैंसर का सबब बन जाता है।

क्या है वजह

  • इस बीमारी के लिए वायु प्रदूषण को खास तौर पर जि़म्मेदार माना जाता है। इसके अलावा कुछ अन्य वजहों से भी लोगों को फेफड़े का कैंसर हो सकता है:
  • सिगरेट या तंबाकू में कार्बन मोनोऑक्साइड और टार जैसे नुकसानदेह तत्व पाए जाते है, जिनकी अधिकता फेफड़े के कैंसर के लिए जि़म्मेदार होती है।
  • पैसिव स्मोकिंग यानी सिगरेट पीने वाले व्यक्ति के आसपास मौज़ूद लोगों, खासतौर पर बच्चों के लिए भी इसका धुआं बहुत नुकसानदेह साबित होता है।
  • प्रदूषण भरे माहौल में रहने या केमिकल फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों को भी ऐसी समस्या हो सकती है।
  • शोध से यह भी तथ्य सामने आया है कि बारिश के बाद एस्बेस्टस शीट से कुछ ऐसे नुकसानदेह केमिकल्स निकलते हैं, जो लंग्स कैंसर के लिए जि़म्मेदार होते हैं।
  • जंक फूड में कई ऐसे प्रिज़र्वेटिव्स मौज़ूद होते हैं, जिनकी वजह से फेफड़ों में गंभीर किस्म की एलर्जी हो सकती है और सही समय पर उपचार न कराने की स्थिति में यह समस्या कैंसर में तब्दील हो सकती है।
  • कमज़ोर इम्यून सिस्टम के कारण बच्चों और बुज़ुर्गों के फेफड़े प्रदूषण से जल्दी प्रभावित होते है। अत: उनमें कैंसर की आशंका अधिक होती है।
  • आनुवंशिकता भी इसकी प्रमुख वजह है। अगर किसी व्यक्ति को लंग्स कैंसर होते तो आने वाली पीढिय़ों को भी ऐसी समस्या हो सकती है।

प्रमुख लक्षण

  • लंबे समय तक खांसी की समस्या
  • कफ के साथ ब्लीडिंग
  • पीठ और छाती में दर्द, खांसने या हंसने के दौरान दर्द बढ़ जाना
  • सांस लेने में तकलीफ
  • गले में घरघराहट या सीटी जैसी आवाज़ निकलना
  • सीढिय़ां चढ़ते समय सांस फूलना
  • भोजन में अरुचि
  • तेज़ी से वज़न घटना
  • आवाज़ में बदलाव
  • बार-बार ब्रॉन्काइटिस या न्यूमोनिया का इन्फेक्शन होना
  • कैसे करेें बचाव

    • लंग्स कैंसर से बचाव के लिए सिगरेट और तंबाकू का सेवन पूरी तरहï बंद कर दें।
    • अगर वातावरण में प्रदूषण हो तो घर से बाहïर निकलते समय मास्क ज़रूर पहïनें। बच्चों  का इम्यून सिस्टम कमज़ोर होता है, इसलिए उनका विशेष ध्यान रखें।
    • अगर प्रदूषण स्तर अधिक हो तो मॉर्निंग वॉक के लिए बाहïर जाने के बजाय घर के भीतर ही एक्सरसाइज़ करें।
    • अगर संभव हो तो घर में अच्छी क्वॉलिटी का एयर प्यूरीफायर लगवाएं।
    • प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आसपास के लोगों के साथ मिलकर ऑफिस जाने के लिए कार पूल की व्यवस्था करें।
    • किसी कुशल प्रशिक्षक से सीख कर नियमित रूप से अनुलोम-विलोम करें। ऐसे अभ्यास से फेफड़े मज़बूत बनते है।

    क्या है उपचार

    आमतौर पर लंग्स हेल्थ स्क्रीनिंग टेस्ट (एलएचएसटी) द्वारा फेफड़े से संबंधित बीमारियों की पहचान की जाती है। फेफड़ों की जांच के लिए बायोप्सी, ब्रान्करेस्कोपी, थोरेकोस्कोपी और अत्याधुनिक सी.टी. स्कैन जैसी तकनीकों की मदद ली जाती है। बीमारी की आशंका होने पर किसी ऐसे हास्पिटल का चुनाव करना चाहिए, जहां कीमोथेरेपी और रेडियो थेरेपी जैसी उपचार की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो। लंग्स कैंसर जैसी समस्या होने पर सर्जरी द्वारा कैंसरयुक्त ट्यूमर को शरीर से निकाल दिया जाता है। उसके बाद रेडियो थेरेपी या कीमोथेरेपी द्वारा बची हुई कैंसरयुक्त कोशिकाओं को जलाकर नष्ट किया जाता है।

    राहत की बात यह है कि अगर सही समय पर पहचान कर ली जाए तो उपचार के बाद यह बीमारी दूर हो जाती है लेकिन उसके बाद भी डॉक्टर द्वारा नियमित चेकअप ज़रूरी है। फेफड़ों को स्वस्थ और मज़बूत बनाए रखने के लिए हेल्दी डाइट अपनाना बहुत ज़रूरी है। हमारी किचन में रोज़ाना इस्तेमाल होने वाली सब्जि़यों, फलों और मसालों में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो फेफड़ों  के लिए बेहद फायदेमंद साबित होते हैं।

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