यूपी के गोहत्या विरोधी कानून पर हाईकोर्ट की फटकार

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित तौर पर गोकशी के एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि यूपी में इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है. अदालत ने राज्य में खुला घूम रहे जानवरों और उनकी वजह से खेती को होने वाले नुकसान और सड़क दुर्घटनाओं पर भी चिंता जताई.

गोहत्या कानून के तहत जेल में बंद रहीमुद्दीन की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा, “उत्तर प्रदेश में गोहत्या संरक्षण कानून का निर्दोष लोगों के खिलाफ दुरुपयोग हो रहा है. जब कभी कोई मांस बरामद होता है, तो उसे फोरेंसिक लैब में जांच कराए बिना गोमांस बता दिया जाता है और निर्दोष व्यक्ति को उस अपराध के लिए जेल भेज दिया जाता है, जो शायद उसने किया ही नहीं है.”

कोर्ट ने यह भी कहा कि जब कभी कोई गोवंश बरामद किया जाता है, तो उसके बाद उसे कहां रखा जाता है, इसकी भी कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी जाती है क्योंकि गो संरक्षण गृह और गोशाला बूढ़े और दूध न देने वाले पशुओं को अपने यहां रखते ही नहीं हैं. इनका व्यापार करने वाले लोग पुलिस और स्थानीय लोगों द्वारा पकड़े जाने के डर से इनको किसी दूसरे राज्य में ले नहीं जा सकते हैं.

याचिकाकर्ता रहमुद्दीन ने इस मामले में कोर्ट में अपील की थी कि उन्हें बिना किसी आरोप के गिरफ्तार कर लिया गया था. रहमुद्दीन का कहना था कि उनकी गिरफ्तारी भी घटनास्थल से नहीं हुई थी और इस बात के भी कोई प्रमाण नहीं थे कि उनके पास से पुलिस ने जो मांस बरामद किया था वह गोमांस है भी या नहीं.

दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने गोहत्या निवारण कानून को और अधिक मजबूत बनाने के मकसद से इसी साल जून में इस कानून को संशोधित किया था. पहले इस संबंध में अध्यादेश जारी किया गया और फिर 22 अगस्त को विधानसभा सत्र के दौरान इसे दोनों सदनों से पारित भी करा लिया.

इस संशोधित कानून के तहत यूपी में गाय या गोवंश की हत्या पर 10 साल तक की सजा और 3 से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. यही नहीं, दूसरी बार यही अपराध करने पर सजा और जुर्माना दोनों लगेंगे और संपत्ति भी जब्त की जा सकेगी. इसके अलावा, इस अपराध के लिए गैंगस्टर ऐक्ट और एनएसए के तहत भी कार्रवाई की जा सकेगी.

उत्तर प्रदेश में गोवध निवारण अधिनियम साल 1956 में छह जनवरी को लागू हुआ था और उसी साल इसकी नियमावली बनी थी. इस कानून में अब तक चार बार संशोधन हो चुका है. सरकार का कहना है कि नए संशोधन से गोवंशीय पशुओं का संरक्षण एवं परिरक्षण प्रभावी ढंग से हो सकेगा और इनके अनियमित परिवहन पर अंकुश लगाने में भी मदद मिलेगी.

उत्तर प्रदेश में मौजूदा सरकार ने गोकशी को रोकने की पिछले तीन साल में कई कोशिशें की हैं. इन कोशिशों की वजह से राज्य में आवारा पशु कई तरह की दूसरी समस्याएं खड़ी किए हुए हैं. सड़कों और यहां तक कि हाईवे पर भी बड़ी संख्या में पशु घूमते मिल जाते हैं और आए दिन इनकी वजह से तमाम दुर्घटनाएं भी हो रही हैं. हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर भी चिंता जताई है.

हालांकि सरकार ने गायों को गोशालाओं में रखने और हर जिले में गोशाला बनाने के आदेश जारी किए हैं, गोशालाओं के रख-रखाव के लिए बजट भी जारी किया गया है, लेकिन इन सबके बावजूद गाय और अन्य गोवंश सड़कों पर नजर आते हैं और आए दिन गोशालाओं में भी पशुओं के भूख से मरने की खबरें आती रहती हैं. यूपी के कई जिलों में बड़ी-बड़ी गोशालाएं बनी जरूर हैं लेकिन यहां न तो गायों के चारे की व्यवस्था रहती है और न ही रख-रखाव के लिए पर्याप्त कर्मचारी रहते हैं. सरकार निजी गोशालाओं को भी अनुदान देती है.

यूपी में राज्य सरकार ने न सिर्फ गोहत्या कानून को संशोधित करके सख्त किया है, बल्कि गोकशी के आरोप में सरकार ने बड़ी संख्या में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी एनएसए के तहत भी कार्रवाई की है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में एनएसए के तहत सबसे ज्यादा कार्रवाई गोहत्या के आरोप में ही हुई है. पिछले एक साल में यूपी पुलिस ने राज्य में 139 लोगों के खिलाफ एनएसए के तहत कार्रवाई की है जिनमें 76 मामले गोहत्या से जुड़े हैं.

गोहत्या के मामलों में एनएसए के अलावा इस साल अब तक उत्तर प्रदेश गोहत्या निवारण अधिनियम के तहत भी 17 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं और चार हजार से ज्यादा लोगों को इन मामलों में गिरफ्तार भी किया जा चुका है.

राज्य सरकार का तर्क है कि गोहत्या का मामला बेहद संवेदनशील होता है. इसकी वजह से कानून-व्यवस्था के सामने कई तरह की समस्याएं आ जाती हैं, इसलिए सरकार ने बहुत ही सख्त कदम उठाया है. सरकार का दावा है कि पिछले तीन साल में यूपी में दंगे नहीं हुए हैं, जिनकी एक वजह गोहत्या कानून का सख्त होना भी है.

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