हिंदी सिनेमा अब भारतीय संस्कृति नहीं दर्शाता-आशा पारेख

अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख को हाल ही में दादा साहेब पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वहीं, अब अभिनेत्री ने एक इंटरव्यू को दौरान बॉलीवुड इंडस्ट्री को लेकर बात की। एक प्रशिक्षित शास्त्रीय नृत्यांगना आशा पारेख ने कहा कि बॉलीवुड अब भारतीय संस्कृति को नहीं दर्शाता है, खासकर डांस के संदर्भ में। इसके साथ ही उन्हें लगता है कि लोग आजकल अपनी भारतीय जड़ों को भूल गए हैं। उन्होंने फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली को इस सबसे अलग बताया और गानों के रीमिक्स पर भी अपनी नाराजगी जाहिर की।इंटरव्यू के दौरान आशा पारेख ने कहा, ‘हम अपनी नृत्य परंपराओं को भूल गए हैं और वेस्टर्न डांस की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं। जिस तरह का डांस हम इन दिनों देख रहे हैं, वह हमारा स्टाइल नहीं है। यह हमारी संस्कृति नहीं है। डांस की हमारी समृद्ध परंपरा है, हर राज्य का अपना एक डांस होता है। और हम क्या कर रहे हैं? हम वेस्टर्न डांस स्टाइल को कॉपी करने की कोशिश कर रहे हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम डांस नहीं, एरोबिक्स कर रहे हैं। यह देखकर मेरा दिल दुखता है।’इसके आगे आशा पारेख ने कहा, ‘संजय लीला भंसाली इस सबसे अलग हैं। आप उनके काम में भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान देख सकते हैं।’ अभिनेत्री ने अपने गानों के रीमिक्स को भयानक बताया। उन्होंने कहा, ‘हम गाने की असली खूबसूरती को रीमिक्स में लाउड ड्रम और बीट्स से खराब कर रहे हैं। शब्द खो गए हैं।’ बता दें कि हाल ही में अभिनेत्री को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला है, जो भारतीय सिनेमा में सर्वोच्च मान्यता रखता है। 22 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी महिला को दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया है।आशा पारेख के करियर की बात करें तो उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 10 साल की उम्र में फिल्म ‘आसमान’ से की थी। 1959 में ‘दिल देके देखो’ में उन्होंने शम्मी कपूर के साथ अभिनय किया और 50 साल से अधिक के अपने करियर के दौरान 95 से अधिक फिल्मों काम किया। उनकी कुछ बेहतरीन फिल्मों में ‘कारवां’, ‘कटी पतंग’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘बहारों के सपने’ और ‘प्यार का मौसम’ शामिल हैं।

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